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१६३] चतुर्दश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सोयग्गिणा आयगुणिन्धणेणं, मोहाणिला पज्जलणाहिएणं ।
संतत्तभावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा बहुं च ॥१०॥ अपने रागादि गुण रूप ईंधन और मोहरूपी पवन से अधिकाधिक प्रज्वलित अग्नि से संतप्त, परितप्त, मोहवश दीन-हीन वचन बोलते हुए-॥१०॥
Due to the fuel of attachments, fed by wind of delusion, sorrowful by the blazing internal fire, subjugated by infatuation, speaking destitute and benign words-(10)
पुरोहिययं तं कमसोऽणुणन्तं, निमंतयन्तं च सुए धणेणं ।
जहक्कम कामगुणेहि चेव, कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं ॥११॥ तथा पुत्रों की एक के बाद एक अनुनय करते हुए, धन के, काम-भोगों के निमंत्रण देते हुए पिता को मोहाच्छादित देखकर कुमारों ने कहा-॥११॥
Flattering sons and inviting one after another for wealth, pleasures etc. Thus seeing the father engrossed by delusion, sons spoke thus- (11)
वेया अहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं ।
जाया य पुत्ता न हवन्ति ताणं, को णाम ते अणुमन्नेज्ज एयं ॥१२॥ (पुत्र) अध्ययन किये हुए-अधीत वेद रक्षक नहीं होते। ब्राह्मणों को भोजन कराने वाले भी तमस्तम नरक में जाते हैं। उत्पन्न हुए अपने पुत्र भी रक्षा करने में समर्थ नहीं होते। अतः आपके इस कथन का कौन अनुमोदन करेगा? ॥१२॥
(Sons) Studied Vedas cannot be a saviour, feeders of Brāhmaṇas go to the seventh hell (तमस्तम नरक), own sons cannot be capable to protect. So who will assent your these words. (12)
खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा ।
संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ॥१३॥ कामभोग क्षण मात्र के लिए सुखद हैं, और दीर्घकाल तक दुखदायी हैं। वे अधिक दुःख और अल्पसुख देते हैं। ये संसार से मुक्त होने में बाधक हैं। इसलिए अनर्थों की खानि हैं ॥१३॥
Worldly pleasures are joyful for a moment and painful for a very long time, they provide intense suffering and slight joy. These are obstacles to attain liberation from worldly ties and so are a very mine of great evils and misfortunes. (13)
परिव्वयन्ते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे ।
अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोत्ति मच्चुं पुरिसे जरं च ॥१४॥ जो पुरुष कामनाओं से निवृत्त नहीं है, वह अतृप्ति की अग्नि से संतप्त होकर रात-दिन भटकता रहता है। दूसरों के प्रति आसक्त ऐसा पुरुष धन की खोज करता हुआ वृद्धावस्था और मृत्यु को प्राप्त करता है ॥१४॥
A man who has not abandoned desires, he wanders about being distressed by the fire of discontentment. Charmed to others such person seeking for wealth, comes to old age and death. (14)
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