________________
१६१] चतुर्दश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चउद्दसमं अज्झयणं उसुयारिज्जं । चतुर्दश अध्ययन : इषुकारीय
देवा भवित्ताण पुरे भवम्मी, केइ चुया एगविमाणवासी ।
पुरे पुराणे उसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥१॥ सुरलोक के समान रम्य-मनोहर इषुकार नाम का एक समृद्ध, प्रसिद्ध, प्राचीन नगर था। एक ही देव विमान वासी कई देव अपना देव आयुष्य पूर्ण कर उस नगर में मनुष्य रूप में उत्पन्न हुए ॥१॥
There was an ancient, wealthy, famous and beautiful like heaven, the city named Isukára. In that city many gods of one celestial palace completing their life-duration born as human beings. (1)
सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसु दग्गेसु य ते पसूया ।
निव्विण्णसंसारभया जहाय, जिणिन्दमग्गं सरणं पवन्ना ॥२॥ पूर्वजन्म में कृत अपने अवशिष्ट कर्मों के कारण वे सभी आत्माएँ उच्च कुलों में उत्पन्न हुए और संसारभय से उद्विग्न होकर तथा काम-भोगों को त्यागकर सभी ने जिनेन्द्र भगवान के मार्ग की शरण ग्रहण की ॥२॥
Due to remnant of meritorious deeds, which they accumulated in former life, they all were bom in noble families. Disgusted with transmigrational world and renouncing the mundane pleasures, they all took refuge in the path of Jinas (victor of karmas). (2)
पुमत्तमागम्म कुमार दो वी, पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती ।
विसालकित्ती य तहोसुयारो, रायत्थ देवी कमलावई य ॥३॥ पुरुषत्व को प्राप्त करके दोनों पुरोहित-पुत्र तथा पुरोहित, उसकी पत्नी यशा, विपुल कीर्ति वाला राजा इषुकार और उसकी रानी कमलावती-यह छह व्यक्ति थे ॥३॥
These were six persons--Two sons of Bhrgu Purohita, Bhrgu Purohita himself, his wife Yasā, widely-famed King Isukāra and his queen Kamalavati. (3)
जाई-जरा-मच्चुभयाभिभूया, बहिं विहाराभिनिविट्ठचित्ता ।
संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दळूण ते कामगुणे विरत्ता ॥४॥ मुनियों के दर्शन करके वे दोनों पुरोहित-पुत्र जन्म-जरा-मृत्यु के भय से उद्विग्न हो गये। उनके चित्त बहिर्विहार-मोक्ष की ओर आकृष्ट हो गये और संसार-चक्र से विमुक्त होने के लिए वे कामगुणों से विरक्त
हुए ॥४॥
Having seen the virtuous saints both the sons of Bhrgu Purohita, overcome by fear of birth, old age and death. Their hearts and heads attracted towards salvation, and for escaping the wheel of birth and deaths, they become disinclined towards the empirical pleasures and
Samusements. (4) Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org