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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोदश अध्ययन [१५४
Leaving here his bipeds, quadripeds, fields, houses, wealth, com and everything this precarious soul, accompanied only by its karmas (deeds) enters a new existence good or bad. (24)
तं इक्कगं तुच्छसरीरगं से, चिईगयं डहिय उ पावगेणं ।
भज्जा य पुत्ता वि य नायओ य, दायारमन्नं अणुसंकमन्ति ॥२५॥ आत्मा रहित इस तुच्छ शरीर को चिता में भस्म करके स्त्री, पुत्र तथा जाति-जन किसी अन्य आश्रयदाता का अनुसरण करते हैं ॥२५॥
Burning, this soul-less body-corpse in pyre to ashes; the wife, sons and kinsfolk follow any other person as shelter, i.e., they took refuge of any other man. (25)
उवणिज्जई जीवियमप्पमायं, वण्णं जरा हरइ नरस्स रायं !
पंचालराया ! वयणं सुणाहि, मा कासि कम्माइं महालयाई ॥२६॥ ___ हे राजन् ! किसी प्रकार का प्रमाद अथवा भूल किये बिना कर्म जीवन को प्रत्येक क्षण मृत्यु के समीप ले जा रहा है और यह वृद्धावस्था शरीर के लावण्य का हरण कर रही है। अतः हे पांचालराज ! मेरे वचनों को सुनो और अधिक पापकर्मों को मत करो ॥२६॥
O King! Without any slip and negligence karmas drag life continuously towards death and old age carries off the grace and valour of man. So Ruler of Pāncāla kingdom ! pay heed to my words and do no much fear begeting sinful deeds. (26)
अहं पि जाणामि जहेह साहू ! जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं ।
भोगा इमे संगकरा हवन्ति, जे दुज्जया अज्जो ! अम्हारिसेहिं ॥२७॥ (ब्रह्मदत्त-) हे साधु चित्र ! जैसा आप मुझे बता रहे हैं, मैं भी जानता हूँ कि ये काम-भोग बन्धन रूप हैं किन्तु हे आर्य ! मेरे जैसे लोगों के लिए तो ये दुर्जेय ही हैं ॥२७॥
(Brahmadutta) O Citra sage ! As you are telling me, I also know that these pleasures and amusements bind the soul but O reverend sage ! these cannot be overcome by the persons like me. (27)
हत्थिणपुरम्मि चित्ता ! दणं नरवई महिड्ढियं ।
कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुहं कडं ॥२८॥ ___ हे चित्र ! हस्तिनापुर में महाऋद्धि वाले चक्रवर्ती को देखकर, भोगों में आसक्त होकर मैंने अशुभ निदान किया था ॥२८॥
O monk Citra ! In Hastinapura, seeing the huge fortunes of great monarch (Sanatkumāra) and becoming desirous of worldly pleasures I made demeritorious firm volition. (28)
तस्स मे अपडिकन्तस्स, इमं एयारिसं फलं । जाणमाणो वि जं धम्मं, कामभोगेसु मुच्छिओ ॥२९॥
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