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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र इस अध्ययन में कई ऐसी विशेषताएँ हैं, जो शाश्वत महत्व की हैं जैसे जाति का कोई महत्व नहीं; शील-सदाचार, तप-त्याग आदि ही महत्वपूर्ण होते हैं । यज्ञ-याग आदि का वास्तविक स्वरूप । वैदिक परम्परा जाति पर आधारित है। जाति-व्यवस्था के आधार पर ही ब्राह्मण सर्वोच्च और पूज्य माने जाते थे; जबकि चांडाल आदि निकृष्टतम । श्रमण (जैन और बौद्ध दोनों) परम्परा जाति का महत्व नहीं मानती, यहाँ सदाचरण और गुणों का महत्व तथा तप-त्याग की विशेषता मानी गई है। प्रस्तुत अध्ययन में मुनि हरिकेशबल ने वैदिक और जैन- दोनों परम्पराओं के समन्वय का प्रयास किया है। द्वादश अध्ययन [ १२४ प्रस्तुत अध्ययन में पुण्य क्षेत्र, आत्मिक यज्ञ, शील-सदाचार, चारित्र, ब्रह्मचर्य आदि की यथार्थ स्थिति की बड़े ही सम्यक् ढंग से विवेचना करके स्थापना की गई है। ब्राह्मणत्व पर श्रमणत्व की विजय की अनुगूँज प्रसारित हो रही है। प्रस्तुत अध्ययन में ४७ गाथाएँ हैं। Jain Education International 卐 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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