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१२३] द्वादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अपने आराध्य मुनि का यह अपमान तिन्दुक यक्ष न सह सका। तुरन्त राजकुमारी भद्रा के शरीर में प्रविष्ट हो गया। यक्षाविष्ट राजकुमारी भद्रा अण्ट शण्ट बोलती और अनर्गल चेष्टाएँ करती हुई बेहोश हो गई। सखियाँ किसी तरह उसे राजमहल में ले गईं।
राजा ने पुत्री के बहुत उपचार कराये किन्तु कोई लाभ न हुआ। राजा अपनी पुत्री के जीवन के लिए चिन्तित हो गया। तब राजकुमारी के शरीर में प्रविष्ट यक्ष ने कहा___ “राजन् ! तुम कितने भी उपचार करा लो, कोई लाभ नहीं होगा। इसने मेरे मन्दिर में ध्यानलीन एक घोर तपस्वी महामुनि का अपमान कर दिया है। उसका फल चखाने के लिए ही मैंने इसकी यह दशा की है। यदि तुम उन महामुनि के साथ इसका विवाह करो तो मैं इसे छोड़ सकता हूँ अन्यथा इसे जीवित नहीं रहने दूंगा।"
पिता को पुत्री प्रिय होती ही है। राजा ने यक्ष की शर्त स्वीकार करली। यक्ष राजकुमारी के शरीर से निकल गया। राजकुमारी स्वस्थ हो गई।
राजा अपनी पुत्री को साथ लेकर तिन्दुक यक्ष के आयतन में पहुँचा। पिता ने अपनी पुत्री के अपराध के लिए क्षमा माँगी और करबद्ध होकर तथा भद्रा को सामने करके प्रार्थना की-भगवन् ! इस कन्या ने आपका बहुत बड़ा अपराध किया है। इसका प्रायश्चित्त यही है कि आप इसके साथ पाणिग्रहण करें और यह कन्या परिचारिका के रूप में आपकी सेवा करे। __मुनि हरिकेशवल ने कहा-राजन् ! न तो इस कन्या ने मेरा कोई अपराध किया है और न मेरा अपमान ही हुआ है। पाणिग्रहण की बात तो बहुत दूर, मैं ब्रह्मचर्य महाव्रत का पालन करने वाला हूँ। जहाँ स्त्रियों का आवागमन हो, वहाँ मैं ठहर भी नहीं सकता। तुम अपनी पुत्री को ले जाओ। मुझे इससे कोई प्रयोजन नहीं है। __राजा ने कन्या को यक्ष-प्रकोप से मुक्त करने की मुनि से प्रार्थना की; लेकिन मुनि मौन हो गये। तब यक्ष ने ही कहा-मुनि तुम्हें स्वीकार नहीं करते तो तुम चली जाओ।
राजा अपनी पुत्री के साथ वापिस लौट आया।
राजा ने मंत्रियों से विचार-विमर्श किया तो मंत्रियों ने कहा-मुनि-परित्यक्ता कन्या का विवाह ब्राह्मण के साथ ही किया जा सकता है। अतः भद्रा का विवाह विप्र रुद्रदेव याज्ञिक के साथ हो गया।
रुद्रदेव ने अपनी यज्ञशाला की व्यवस्था नवविवाहिता पत्नी राजकुमारी भद्रा को सौंपी और एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया।
मासोपवासी मुनि हरिकेशबल भिक्षा हेतु भ्रमण करते हुए संयोगवश उसी यज्ञशाला में पहुंचे। आगे की कथा प्रस्तुत अध्ययन की गाथा १२ से ४७. तक प्रतिपादित है।
१. (विशेष-ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि राजा अपनी पुत्री को वहीं छोड़कर चला आता है। यक्ष मुनि हरिकेशबल का रूप
रखकर राजकुमारी के साथ पाणिग्रहण करता है। प्रातः मुनि से सच्चाई जानकर राजकुमारी वापस राजमहल लौट जाती है। तदुपरान्त ऋषि-पत्नी मानकर उसका विवाह याज्ञिक रुद्रदेव के साथ होता है।) (Note-This description also we get in some scripturesKing returns to his palace leaving the princess in Yakșa temple. Yakșa weds the princess in the guise of monk Harikeśabala. In the morning, being aware of true position, princess returns to palace. Supposing as
the wife of monk, she was married to sacrificer (याज्ञिक) Rudradeva.) Jain Education International For Private & Personal Use Only
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