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११७] एकादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ,
जहा से वासुदेवे, संख-चक्क-गयाधरे ।
अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२१॥ जिस प्रकार शंख, चक्र, और गदा आयुधों को धारण करने वाला वासुदेव अप्रतिहत बलशाली योद्धा होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी होता है ॥२१॥
As the possessor of conch-shell (शंख) discus (चक्र) club (गदा) weapons the Vasudeva is an unconquerable warrior, so is the very deep learned sage. (21)
जहा से चाउरन्ते, चक्कवट्टी महिड्ढिए ।
चउद्दसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२२॥ जिस प्रकार चारों दिशाओं के अन्त तक का स्वामी, महर्द्धिक, चौदह रनों का अधिपति चक्रवर्ती सम्राट होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी चौदह पूर्वो के ज्ञान का धारक होता है ॥२२॥ ___ As the universal monarch (really the ruler of six regions of Bharat) (चक्रवर्ती) is the ruler upto the end of all the four directions, exalted, master of 14 gems; so is the deep learned sage possessor of the knowledge of 14 pūrvas. (22)
जहा से सहस्सक्खे, वज्जपाणी पुरन्दरे ।।
सक्के देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२३॥ जिस प्रकार सहस्रचक्षु, वज्रपाणि, पुरन्दर शक्रेन्द्र देवों का अधिपति होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी दिव्य ज्ञान का अधिपति होता है ॥२३॥ ____As the thousand-eyed, thunderbolt in hand, destroyer of fortresses, king of gods is Sakra; so the very deep learned sage is the master of holy scriptural knowledge. (23)
जहा से तिमिरविद्धंसे, उत्तिट्ठन्ते दिवायरे ।
जलन्ते इव तेएण, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२४॥ जिस प्रकार अन्धकार का नाश करने वाला, उदय होता हुआ सहनरश्मि दिवाकर अपने तेज से जाज्वल्यमान प्रतीत होता है उसी प्रकार बहुश्रुत भी तेजस्वी होता है ॥२४॥
As the rising sun, the dispeller of darkness, with thousand rays, fiery with its lustre; so the very learned sage is also lustrous. (24)
. जहा से उडुवई चन्दे, नक्खत्त-परिवारिए ।
पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२५॥ ___ जैसे तारागणों का अधिपति चन्द्रमा नक्षत्रों से परिवृत पूर्णिमा को अपनी परिपूर्ण ज्योत्स्ना से प्रकाशित होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी होता है ॥२५॥ .
As the moon, the head of stars, surrounded by asterisms, manifests its full light in the • full moon night; so is the deep learned sage. (25)
जहा से सामाइयाणं, कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधन्नपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२६॥
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