________________
१०५] दशम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
बेइन्दियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसन्नियं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१०॥
द्वीन्द्रियकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्यातकाल तक उसी काय में रहता है। अतः है गौतम ! क्षर भर का भी प्रमाद मत करो ॥१० ॥
The soul born in two-sensed beings-body inherits in the same body by continuous births and deaths, utmost upto numerable time. So Gautama! do not be negligent even for a smallest bit of time. (10)
तेइन्दियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसन्नियं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥११॥
त्रीन्द्रियकाय के जीवों की उत्कृष्टतः कायस्थिति संख्यात काल तक की है। अतः हे गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत करो ॥११॥
The soul born in three-sensed-beings-body, inherits the same body by continuous births and deaths, utmost upto numerable time. Hence Gautama! have no negligence even for awhile. (11)
चउरिन्दियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसन्नियं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१२॥
चतुरिन्द्रिय काय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक संख्यात काल तक उसमें रहता है। अतः हे गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत करो ॥१२॥
The soul born in four-sensed-beings-body, inherits in the same body by continuous births and deaths upto utmost numerable period of time. So Gautama! be not negligent even for a moment. (12)
पंचिन्दियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । सत्तट्ठ-भवग्गहणे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१३॥
पंचेन्द्रियकाय में उत्पन्न हुआ जीव अधिक से अधिक सात या आठ बार तक उसी गति में जन्म-मरण कर सकता है। अतः हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो ॥१३॥
The soul born in five-sensed-beings (men and beasts) may take birth and death only seven or eight times maximumly. So Gautama ! have no negligence even for a moment. (13)
Jain Education International
देवे नेरइए य अइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे ।
इक्किक्क भवग्गहणे, समयं गोयम ! मा पमाय ॥ १४ ॥
देव और नारकी जीव अधिक से अधिक उसी गति में एक बार ही जन्म लेते हैं । अतः हे गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत करो ॥१४॥
The hellish-beings and gods may take continuous birth only once in those existences (गति) maximumly. So Gautama ! be not careless even for awhile. (14)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org