________________
तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
दशम अध्ययन [१०४
पृथ्वीकाय में उत्पन्न हुआ जीव, उसी काय में पुनःपुनः जन्म-मरण करता हुआ, अधिकतम असंख्यात काल तक पृथ्वीकाय में ही रहता है। अतः हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो ॥५॥
The soul taking birth in earth-body, by continuous births and deaths in that body, remains in the same body utmost upto innumerable span of time. So Gautama ! do not be negligent even for a thousandth part of a second. (5)
आउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे ।
कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥६॥ जलकाय में उत्पन्न हुआ जीव, उसी काय में बार-बार जन्म-मरण करता हुआ, अधिकतम असंख्यात काल तक रहता है। अतः हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो ॥६॥ ___The soul, bom in water-body, by continuous births and deaths in that body, remains in the same body utmost upto innumerable span of time. So Gautama ! be not careless even for awhile. (6)
तेउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे ।
कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥७॥ जो जीव तेजस्काय में उत्पन्न होता है, वह उसी काय में बार-बार जन्म-मरण करता हुआ, अधिक से अधिक संख्यातीत असंख्य काल तक उसी तेजस्काय में रहता है। अतः हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद' मत करो ॥७॥
The soul takes birth in fire-body, by continuous births and deaths in the same body, remains in that body upto utmost innumerable time period. So Gautama ! have no negligence even for a moment. (7)
वाउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे ।
कालं संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥८॥ वायुकाय में जो जीव उत्पन्न होता है, वह बार-बार वायुकाय में ही जन्म मरण करता हुआ, अधिक से अधिक असंख्य काल तक उसी वायुकाय में रहता है। अतः हे गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत करो ॥८॥
The soul born in air-body, by continuous births and deaths in the same body, remains there utmost upto innumerable time. Hence Gautama ! have no negligence even for å moment. (8)
वणस्सइकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे ।
कालमणन्तदुरन्तं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥९॥ वनस्पतिकाय में उत्पन्न हुआ जीव, बार-बार जन्म-मरण करता हुआ, उत्कृष्टतः दुरन्त अनन्तकाल तक उसी काय में रहता है। अतः हे गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत करो ॥९॥
The soul vegetate as green-stuff-vegetation-body, by continuous births and deaths in the same body, remains in that body utmost upto infinite time which is very difficult to end. Therefore Gautama ! be not negligent even for a moment. (9) For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International