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________________ ८५] नवम अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र नवम अध्ययन - नमिप्रव्रज्या पूर्वालोक विदेहराज मिथिलानरेश राजा नमि एक बार भयंकर दाह ज्वर से व्यथित हुए। छह माह तक दाह-ज्वर की पीड़ा चलती रही। अनेक उपचार किये गये लेकिन रोग शान्त नहीं हुआ । अन्त में एक वैद्य ने कहामहाराज के शरीर पर गोशीर्ष चन्दन का लेप किया जाय तो इन्हें शान्ति मिलेगी। रानियाँ स्वयं चन्दन घिसने लगीं। उनके हाथों के कंगन परस्पर टकराने से शोर हुआ। दाह-पीड़ित राजा को यह शोर असह्य हो गया। मंत्री के संकेत पर हाथ में सौभाग्यसूचक एक-एक कंगन रखकर रानियाँ चन्दन घिसने लगीं। शोर बन्द हो गया। राजा ने मंत्री से पूछा- क्या चन्दन घिसना बन्द हो गया ? मंत्री ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा - महाराज ! चन्दन अब भी घिसा जा रहा है। एक कंगन किससे टकरायेगा और कैसे शोर होगा ? राजा गहराई में उतर गया - अशान्ति और शोर वहीं होता है, जहाँ दो या दो से अधिक अनेक हों। एक होने पर शांति होती है। शरीर, इंद्रिय, मन, परिवार आदि की भीड़ से घिरा आत्मा सदा ही अशान्त रहता है। यदि आत्मा इन सबका त्याग कर दे, अकेला निस्पृह हो जाय तो शांति ही शांति है। सुख और शांति तो आत्म-भावों में लीन रहने में है। इस प्रकार एकत्व भावना का चिन्तन करते-करते राजा नमि को शान्ति अनुभव हुई। नींद लग गई। भावना का प्रभाव हुआ। राजा का दाह ज्वर भी शान्त हो गया । पुत्र को राज सिंहासन सौंपकर संयम ग्रहण कर लिया। राजा का वैराग्य क्षणिक आवेश है, अथवा इसमें दृढ़ता है, इस बात की परीक्षा करने के लिए स्वयं शक्रेन्द्र ब्राह्मण का वेश बनाकर आया। उसने राजर्षि नमि से कई प्रश्न किये, सांसारिकता की ओर मोड़ने का प्रयास किया लेकिन राजर्षि ने उन सब का युक्तियुक्त समाधान किया । इस सबका संकलन इस अध्ययन में हुआ है। प्रस्तुत अध्ययन का नमि प्रव्रज्या नाम ही अपनी विषय वस्तु का संसूचन कर देता है। आठवें अध्ययन कापिलीय में लाभ और लोभ के दुष्पूर चक्र से विरति का वर्णन हुआ है । किन्तु प्रस्तुत अध्ययन में अन्य प्रकार की विशेषता है। यहाँ विशेषता यह है कि शक्रेन्द्र ब्राह्मण अथवा वैदिक धर्म का प्रतिनिधित्व करता है, उसके सभी प्रश्न और प्रेरणाएँ वैदिक मान्यताओं से अनुप्राणित हैं। जबकि राजर्षि नमि श्रमण परम्परा के प्रतिनिधि हैं। उनके सभी समाधान और उत्तर श्रमण परम्परा के अनुसार हैं। राजर्षि नमि के उत्तरों में आध्यात्मिकता मुखर हो रही है; जबकि इन्द्र उन्हें सांसारिकता की ओर अग्रसर करने के लिए प्रयत्नशील है। इस अध्ययन की गाथाओं में बड़े ही वैज्ञानिक और मनोरम दृष्टान्त तथा रूपक हैं। गाथाबद्ध होने पर . भी प्रश्नोत्तर बड़े ही चुटीले और सार्थक हैं। उपमा और रूपक अलंकार प्रत्येक गाथा में दृष्टव्य है। प्रस्तुत अध्ययन में आदि से अन्त तक आध्यात्मिकता व संसार से विरक्ति के स्वर मुखरित हो रहे हैं। अन्त में जब शक्रेन्द्र राजर्षि नमि को नमन करके उनकी प्रशंसा करता है तब तो आध्यात्मिकता की विजय स्पष्ट परिलक्षित हो जाती है । प्रस्तुत अध्ययन ६२ गाथाएँ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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