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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अट्ठमं अज्झणं : काविलीय अष्टम अध्ययन : कापिलीय
अष्टम अध्ययन [ ८०
अधुवे
असासयंमि, संसारंमि किं नाम होज्ज तं कम्मयं, जेणाऽहं दोग्गइं न गच्छेज्जा ॥१॥
दुक्खपउराए ।
यह संसार अध्रुव, नश्वर, अनित्य और प्रचुर दुःख से भरा है। ऐसा कौन-सा कर्म है, जिससे मैं दुर्गति में न जाऊँ ॥१॥
This transient, ineternal world is full of miseries. What deeds I should perform, so that I may not get the lower state ( दुर्गति). (1)
विजहित्तु पुव्वसंजोगं, न सिणेहं कहिंचि कुव्वेज्जा | असिणेह सिणेहकरेहिं, दोस-पओसेहिं मुच्चए भिक्खू ॥२॥
पूर्व संयोगों का परित्याग करके फिर किसी भी पदार्थ के प्रति स्नेह न करे, प्रेम करने वालों के प्रति भी स्नेह रहित रहने वाला भिक्षु दोष और प्रदोषों से मुक्त हो जाता है ॥२॥
Quitting the former links, placing affection on nothing, not loving those who love-such mendicant becomes free from faults and petty faults. (2)
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तो नाण- दंसणसमग्गो, हियनिस्साए सव्वजीवाणं । सिं विमोक्खणट्ठा, भासई मुणिवरो विगयमोहो ॥३॥
तब केवलज्ञान- केवलदर्शन से संपन्न तथा मोह से पूर्णतः मुक्त मुनिवर (कपिल केवली) ने सभी जीवों के कल्याण, हित तथा उनके मोक्ष के लिए उपदेश दिया ॥ ३ ॥
Then possessor of limitless knowledge and perception, exempted completely from delusion the best monk (Kapila Kevlin) delivered a sermon for the benefit, eternal welfare and liberation of all beings. (3)
सव्वं गन्धं कलहं च विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वे कामजासु, पासमाणो न लिप्पई ताई ॥४॥
भिक्षु कर्मबन्धन के कारण सभी प्रकार के परिग्रह का और कलह के कारणों का त्याग करे तथा सभी काम-भोगों के कटु परिणामों को देखकर आत्मरक्षक मुनि उनसे निर्लिप्त रहे ॥४॥
The mendicant should renounce all types of possessions and scrambles, which are the causes of karma-bondage and watching the evil effects of worldly rejoicings he should not involve in them. (4)
भोगामिसदोसविसणे, हियनिस्सेयसबुद्धि-वोच्चत्थे | बाले य मन्दिए मूढे, बज्झई मच्छिया व खेलंमि ॥५॥
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