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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एगो मूलं पि हारिता, आगओ तत्थ वाणिओ । ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाह ॥ १५ ॥
तीसरा मूलधन भी गँवाकर लौटा। यह व्यवहार की उपमा है। धर्म के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए ॥१५ ॥
The third came back losing all capital. This parable is regarding behavioural life. Know the same-apply it to the religious life also. (15)
सप्तम अध्ययन [ ७२
माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं, नरग-तिरिक्खत्तणं धुवं ॥१६॥
मूलधन मनुष्य-भव है। लाभ देवगति की प्राप्ति है । और मूल नाश से प्राणियों को निश्चित ही तिर्यंच और नरक गति में जाना पड़ता है ॥ १६ ॥
The capital is human life, the gain is attaining heavenly life and through the loss of that capital man must get birth as a denizen of hell or a brute animal. (16)
दुहओ गई बालस्स, आवई वहमूलिया । देवत्तं माणुसत्तं च, जं जिए लोलयासढे ॥१७॥
बाल (अज्ञानी) प्राणी की आपदामूलक नरक और तिर्यंच- ये दो ही गति होती हैं; क्योंकि वह लोलुपता और धूर्तता करके मनुष्य और देवगति को पहले ही हार चुका है ॥१७॥
The fools can have the two states-animal or the hell, which are full of miseries and sorrows; because they have lost the manhood and godhood before hand by heir lusts and stupid activities. (17)
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तओ जिए सई होइ, दुविहं दोग्गइं गए । दुल्लहा तस्स उम्मज्जा, अद्धाए सुचिरादवि ॥ १८ ॥
दो प्रकार की दुर्गति (नरक और तिर्यंच गति) को प्राप्त प्राणी का उन गतियों से उबरना ( निकलना) बहुत कठिन है, उसे वहाँ दीर्घकाल तक रहना पड़ता है ॥ १८ ॥
Taking birth in two lower states, viz., hellish and animal life, it becomes very difficult to come out of them, the soul has to remain in these states for a very long time. (18)
एवं जियं सपेहाए, तुलिया बालं च पंडियं । मूलियं ते पवेसन्ति, माणुस जोणिमेन्ति जे ॥ १९ ॥
इस तरह सुगतियों को हारे हुए प्राणियों को देखकर तथा ज्ञानी और अज्ञानी की तुलना कर, जो मानव-योनि में आते हैं, वे उस वणिक के समान हैं जो मूलधन लेकर वापस लौट आया ॥ १९ ॥
Considering the souls-loser of upper or superior state and comparing the wise and unwise, who take birth as a man, they are like the merchant who returned home with his capital as it was. (19)
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