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६९] सप्तम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सत्तमं अज्झयणं : उरब्भिज्ज | सप्तम अध्ययन : उरभ्रीय |
जहाएसं समुद्दिस्स, कोइ पोसेज्ज एलयं ।
ओयणं जवसं देज्जा, पोसेज्जा वि सयंगणे ॥१॥ जिस प्रकार कोई पुरुष संभावित अतिथि का लक्ष्य रखकर मेमने (भेड़ का बच्चा) का पोषण करता है। चावल, जौ, हरी घास आदि देता-खिलाता है और अपने आंगन में ही रखकर उसका पोषण करता है ॥१॥
For the provision of a future guest some one brings up a young lamb, feeds it rice gram and soft grass and keeps it in his yard with due care-(1)
तओ से पुढे परिवूढे, जायमेए महोदरे ।
पीणिए विउले देहे, आएसं परिकंखए ॥२॥ तब वह मेमना (अच्छा खाने-पीने से) पुष्ट, बलशाली और स्थूल उदर वाला हो जाता है। अब वह मांसल शरीर वाला तथा तृप्त मेमना अतिथि के आगमन की प्रतीक्षा कररता है ॥२॥
Then, it grows fleshy, with fattened belly, strong by feeding well; the lamb awaits the coming guest. (2)
जाव न एइ आएसे, ताव जीवइ से दुही ।
अह पत्तंमि आएसे, सीसं छेत्तूण भुज्जई ॥३॥ जब तक अतिथि (मेहमान) का आगमन नहीं होता तब तक वह मेमना जीवित रहता है और अतिथि के आने पर उसका सिर काटकर उसे भक्षण कर लिया जाता है ॥३॥
Till the arrival of guest the lamb lives on and as soon as the guest arrives it is eaten up chopping off its head. (3)
जहा खलु से उरब्भे, आएसाए समीहिए ।
एवं बाले अहम्मिठे, ईहई नरयाउयं ॥४॥ अतिथि के हेतु कल्पित किया गया वह मेमना, जिस प्रकार उस अतिथि की प्रतीक्षा करता है उसी प्रकार अज्ञानी-अधर्म में लीन जीव भी नरक आयु की (अनजाने ही) आकांक्षा-प्रतीक्षा करता है ॥४॥
As the well-reared lamb for the sake of guest, awaits the guest so is the case with the person ignorant of truth and indulged in sinful activities, he also longs for hellish life unawarely. (4)
हिंसे बाले मुसावाई, अद्धाणंमि विलोवए । अन्नदत्तहरे तेणे, माई कण्हुहरे सढे ॥५॥
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