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________________ त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र सप्तम् अध्ययन [६४ "माँ ! आज मालिक ने अपने लाड़ले मेमने को मार दिया। क्या मैं भी किसी दिन इसी तरह मार दिया जाऊँगा?" गाय ने अपने वत्स (बछड़े) को दुलराते-पुचकारते हुए कहा "नहीं बेटा ! तू क्यों काटा जायगा? तू तो सूखी घास खाता है। जो रूखा-सूखा खाते हैं। उन्हें ऐसा भयंकर फल नहीं भोगना पड़ता। जो मनचाहे सुस्वादु भोजन खाते हैं, ऐश करते हैं, इन्द्रिय-विषयों में लम्पट बने रहते हैं, उन्हीं को ऐसे भयंकर परिणाम भोगने पड़ते हैं, छुरी उन्हीं के गले पर चलती है, जो आसक्त होते हैं।" __ माँ (गाय) का आश्वासन पाकर बछड़ा शांत हो गया। इस दृष्टान्त का आशय साधक को इन्द्रिय-विषयों और काम-भोगों के कटुफल दिखाकर उनसे विरक्त करना है। क्योंकि भोगों की ओर रुचि भी साधक-जीवन को नष्ट कर देती है। २. दूसरा दृष्टान्त-अल्प के लिए अधिक को गँवाना एक भिखारी था। उसने परदेश जाकर बड़ी कठिनाई से एक हजार कार्षापण इकट्ठे किये। उन कार्षापणों की थैली लेकर वह अपने गाँव लौट रहा था। मार्ग व्यय के लिए उसने कुछ काकिणियाँ (एक कार्षापण की ८० काकिणी) अलग रख ली थीं। एक बार वह कहीं एक काकिणी भल गया और आगे चल दिया। रास्ते में काफी दूर आगे जाने पर उसे काकिणी की याद आई। वह एक काकिणी को कैसे छोड़ सकता था? रास्ता जंगल का था। उसने हजार कार्षापणों की थैली गड्ढा खोद कर एक वृक्ष के नीचे गाड़ दी और काकिणी लेने वापिस चल दिया। उसे थैली गाड़ते एक तस्कर ने छिपकर देख लिया। वह थैली लेकर चम्पत हो गया। दमक (भिखारी) उसी स्थान पर पहुंचा जहाँ काकिणी भूल आया था लेकिन उसे वहाँ काकिणी नहीं मिली, वापस लौटा तो हजार कार्षापणों की थैली भी गायब थी। उसने एक काकिणी के लिए हजार कार्षापण गँवा दिये। अब वह माथा पीटकर पश्चात्ताप करने लगा। इस दृष्टान्त में अत्यधिक लोभ का दुष्परिणाम दिखाया है। लोभासक्त व्यक्ति इसी तरह धोखा खाते हैं। अल्प सुख के लिए अधिक (दिव्य) सुखों को खो देने वाले भी इसी तरह दुःखी होते हैं। ३. तीसरा दृष्टान्त-स्वाद के लिए जीवन-नाश एक राजा था। उसे आम बहुत प्रिय थे। नित्य और अधिक आम खाने के कारण, वह रोगी हो गया। एक अनुभवी वैद्य ने इलाज करके उसे स्वस्थ कर दिया और साथ ही कह दिया कि राजन् ! आम तुम्हारे लिए अपथ्य है। यदि आम का एक टुकड़ा भी तुमने खा लिया तो बच नहीं सकोगे। एक बार राजा मंत्री के साथ वन भ्रमण को गया। वन में आम्रवृक्ष पर पके आमों को देखकर उसका मन ललचा गया। मंत्री के मना करते-करते भी उसने एक आम खा लिया। रोग तीव्र वेग से उभरा और राजा का प्राणान्त हो गया। क्षणिक इन्द्रिय सुखों में आसक्त मानव इसी तरह अपने अनमोल जीवन को गँवा देते हैं। ४. चौथा दृष्टान्त-तीन वणिक्-पुत्र एक वणिक् ने अपने तीन पुत्रों को द्रव्योपार्जन हेतु विदेश भेजा। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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