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५९] षष्टम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
छट्ठमज्झयणं : खुड्डागनियंठिज्ज षष्टम अध्ययन : क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय
जावन्तऽ विज्जापुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारंमि अणन्तए ॥१॥
जितने भी अविद्यावान् पुरुष ( अज्ञानी - मिथ्यात्वी पुरुष) हैं, वे सभी दुःख को उत्पन्न करते हैं। वे मूढ़ अनंत संसार में बार-बार लुप्त होते हैं, डूब जाते हैं ॥१॥
All the persons steeped in wrong faith and ignorant of truth, cause pains and troubles for themselves. Those foolishes transmigrate in the world which has no end. (1)
समिक्ख पंडिए तम्हा, पास जाईपहे बहू । अप्पणा सच्चमेसेज्जा, मेत्तिं भूएसु कप्पए ॥२॥
इसलिए पण्डित - ज्ञानी पुरुष जीवयोनियों में उत्पन्न होने के मार्गों (स्त्री-पुत्र -धन आदि के प्रति मोह ) को पाश-प्रबल बंधन जाने, सत्य का स्वयं अन्वेषण करे और सभी जीवों के प्रति मित्रता का आचरण करे, मैत्रीभाव रखे ॥२॥
Hence the wise person having right faith, should consider well the ways of births i.e., woman (wife), son, wealth etc., take these as fast snare of bondage, he should search himself the truth, be compassionate to all beings and have the feeling of friendliness towards them. (2)
माया पिया हुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाय, लुप्पन्तस्स सकम्मुणा ॥ ३ ॥
माता-पिता, पुत्रवधू, भाई, पत्नी और अपने आत्मजात ( औरस ) पुत्र भी, स्वयंकृत कर्मों के भार से लुप्त होते (संसार समुद्र में डूबते) और सभी प्रकार के कष्टों से त्राण दिलाने- रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं ॥३॥
Parents, daughter-in-law, brother, wife and own son-all these are not capable to protect the soul from its own deeds and the calamities of all kinds. (3)
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एमट्ठ सपेहाए, पासे समियदंसणे । छिन्द गेहिं सिणेहं च, न कंखे पुव्वसंथवं ॥४॥
इस अर्थ (सत्य) की समीक्षा करके सम्यग्दृष्टि पुरुष मन में यह धारणा निश्चित करले तथा आसक्ति और स्नेह के बंधन को तोड़कर पूर्व परिचितों से संसर्ग की इच्छा भी न करे ॥४॥
The pure faith-man should take this truth to heart; he should therefore cut off love and attachment and not hanker after his former acquaintances. (4)
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