________________
५५ ] पंचम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र h
तओ काले अभिप्पेए, सड्ढी तालिसमन्तिए । विणएज्ज लोम-हरिसं, भेयं देहस्स कंखए ॥ ३१॥
मरणकाल निकट आने पर जिस श्रद्धा से प्रव्रज्या ग्रहण की थी उसी श्रद्धा से गुरु के निकट रहकर पीड़ाजन्य लोमहर्ष को दूर करके शांति के साथ शरीर छूटने की प्रतीक्षा करे ॥३१ ॥
By which firm faith had accepted the ascetic life with the same firm faith, at the time of death, he should, remaining in the presence of preacher, subdue all emotions of fear and joy and wait for the dissolution of the body. (31)
अह कालंमि संपत्ते, आघायाय समुस्सयं । सकाम-मरणं मरई, तिहमन्नयरं मुणी ॥ ३२ ॥
-त्ति बेमि । मृत्युकाल प्राप्त होने पर मुनि भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और प्रायोपगमन (पादपोपगमन) - इन तीन प्रकार के सकाममरण में से किसी एक प्रकार का मरण स्वीकार करके सकाममरण से शरीर का त्याग करता है ॥३२॥ - ऐसा मैं कहता हूँ ।
Jain Education International
At the arrival of appropriate time of quitting the body, the monk dies with his will according to one of three methods, viz., (1) Giving up food and water till life ( भक्त परिज्ञा ) (2) pinning to a spot till death (इंगिनी मरण) (3) lying on one side like a fallen branch of a tree. (प्रायोपगमन). (32) Such I speak
卐
For Private & Personal Use Only
www.jahelorary.org