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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचम अध्ययन [५०
Person addicted to sensual pleasures, he alone runs towards violence and falsehood. He says-I have not seen the next birth but these worldly pleasures I see with my own eyes. (5)
'हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया ।
को जाणइ परे लोए, अत्थि वा नत्थि वा पुणो' ॥६॥ ये काम-भोग तो हाथ में आये हुए हैं; लेकिन भविष्यकालीन सुख तो अनिश्चित हैं। कौन जानता है, परलोक है भी अथवा नहीं है ॥६॥
The enjoyments and pleasures of this life are in my hand; but the future ones are uncertain, who knows whether there is next life or not. (6)
'जणेण सद्धिं होक्खामि', इइ बाले पगब्भई ।
काम-भोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जई ॥७॥ 'मैं तो जन-साधारण के साथ ही रहूँगा' (इन्हीं के बीच रहना है, जो इनकी दशा होगी, वह मेरी भी हो जाएगी) ऐसी धारणा बनाकर वह ढीठ बन जाता है और कामभोग-गद्धि के कारण स्वयं ही कषि होता है ॥७॥
The unreasoned (arn) man decides 'I will live with generality. I have to live amidst them. Whatever would be the condition of all, the same would be of mine.' Thus he becomes impudent. So because of indulgence to pleasures and amusements he absolves in grieves and miseries himself. (7)
तओ से दण्डं समारभई, तसेसु थावरेसु य ।
अट्ठाए य अणट्ठाए, भूयग्गामं विहिंसई ॥८॥ तब वह त्रस और स्थावर जीवों पर दण्ड-प्रयोग करता है। सप्रयोजन अथवा निष्प्रयोजन ही प्राणी समूह की हिंसा, उनका विनाश करता है ॥८॥
Then he acts cruelly against movable and immovable beings. He kills them with purpose and even without purpose. (8)
हिंसे बाले मुसावाई, माइल्ले पिसुणे सढे ।
भुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयं ति मन्नई ॥९॥ __ वह हिंसक, अज्ञानी-बाल, मृषावादी, कपटी, चुगलखोर, शठ, धूर्त होता है तथा मद्य-मांस का सेवन करता हुआ मानता है कि यही श्रेयस्कर है ॥९॥
That man devoid of reason kills the living beings, tells lies, deceives, calumniates, dissembles, and drinking liquor and eating meats-supposes that these are the right things, I am doing. (9)
कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु ।
दुहओ मलं संचिणइ, सिसुणागु व्व मट्टियं ॥१०॥ वह तन और वचन से सदा उन्मत्त बना रहता है, धन और स्त्रियों में आसक्त रहता है तथा राग और द्वेष दोनों प्रवृत्तियों से उसी प्रकार कर्म-मल का संचय करता है जिस प्रकार अलसिया-कैंचुआ शरीर और मख दोनों ओर से मिट्टी का संचय करता रहता है |॥१०॥
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