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४९] पंचम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचमं अज्झयणं : अकाम-मरणिज्जं पंचम अध्ययन : अकाम-मरणीय
अण्णवंसि महोहंसि, एगे तिण्णे दुरुत्तरे ।
तत्थ एगे महापन्ने, इमं पट्ठमुदाहरे ॥ १ ॥
यह संसार महाप्रवाह युक्त एक सागर है। इसे तैर कर पार करना बहुत ही कठिन कार्य है। फिर भी कुछ लोग इसे पार कर गये हैं। उनमें से एक महाप्रज्ञ श्रमण भगवान महावीर भी हैं। उन्होंने ऐसी प्ररूपणा की है - ॥१ ॥
This world is like an ocean having huge flow and mighty waves. It is very difficult to cross it swimming. But some persons crossed. The utmost witty Śramana Bhagawana Mahāvira also crossed it. He precepted like this - (1)
सन्ति यदुवे ठाणा, अक्खाया मारणन्तिया । अकाम-मरणं चेव, सकाम-मरणं तहा ॥२॥
मरण के दो स्थान (भेद या रूप) बताये हैं - ( १ ) अकाममरण और (२) सकाममरण ॥२॥ There are two types of death - ( 1 ) Non-voluntary death and ( 2 ) Voluntary death. (2)
बालाणं अकामं तु, मरणं असई भवे ।
पण्डिया सकामं तु, उक्कोसेण सइं भवे ॥३॥
बाल अथवा सदसद्विवेक-विकल अज्ञानी जीवों का अकाम ( अनिच्छापूर्वक) मरण बार-बार होता है किन्तु पंडितों (ज्ञानी - चारित्रवानों) का सकाम (इच्छापूर्वक) मरण उत्कृष्ट रूप से एक बार होता है ॥३ ॥
Ignorants-devoid of the discretion of truth and non-truth, again and again die involuntary death; but the pundits having true knowledge and conduct die voluntary death excellently only once. (3)
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तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसियं ।
काम-गिद्धे जहा बाले, भिसं कूराई कुव्वई ॥४॥
अकाममरण के विषय में भगवान महावीर ने बताया है कि काम भोगों में आसक्त अज्ञानी जीव घोर क्रूरकर्म करता है ॥४॥
Bhagavana Mahāvīra told about non-voluntary death that the true-knowledge-devoid being indulged in passions does more cruel deeds. (4)
जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे
कूडा गच्छई । 'न मे दिट्ठे परे लोए, चक्खु - दिट्ठा इमा रई' ॥५॥
जो व्यक्ति काम-भोगों में गृद्ध होता है, वह अकेला कूट ( हिंसा तथा मृषावाद) की ओर जाता है। वह कहता है कि परलोक तो मैंने देखा ही नहीं किन्तु यह सांसारिक सुख तो प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं ॥५॥
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