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+ संठिआ, छविणिरातंका, अणुलोमवाउवेगा, कंकग्गहणी, कवोयपरिणामा, सउणिपोसपिटुंतरोरुपरिणया,
छद्धणुसहस्ससिआ। म तेसि णं मणुआणं वे छप्पण्णा पिट्ठकरंडकसया पण्णत्ता समणाउसो ! पउमुप्पलगंधसरिसणीसाॐ ससुरभिवयणा, ते णं मणुआ पगईउवसंता, पगईपयणुकोहमाणमायालोभा, मिउमद्दवसंपन्ना, अलीणा,
भद्दगा, विणीआ, अप्पिच्छा, असण्णिहिसंचया, विडिमंतरपरिवसणा, जहिच्छिअकामकामिणो। + २८. [३] भरत क्षेत्र के मनुष्य ओघस्वर-प्रवाहशील स्वरयुक्त, हंस की ज्यों मधुर स्वरयुक्त, क्रौंच 卐
पक्षी की ज्यों बहुत दूर तक पहुँचने वाले स्वर से युक्त तथा नन्दी-द्वादशविध-तूर्य-समवाय-बारह ॐ प्रकार के तूर्य-वाद्यविशेषों के सम्मिलित नाद सदृश स्वरयुक्त थे। उनका स्वर एवं घोष-अनुनाद-दहाड़
या गर्जना सिंह जैसी जोशीली थी। उनके स्वर तथा घोष में निराली शोभा थी। उनकी देह के अंग-अंग 5
प्रभा से उद्योतित थे। वे वज्रऋषभनाराच संहनन-सर्वोत्कृष्ट अस्थिबन्ध तथा समचौरस संस्थान वाले थे। 卐 उनकी चमड़ी में किसी प्रकार का रोग या विकार नहीं था। वे देह के अन्तर्वर्ती पवन के उचित 卐 - वेग-गतिशीलता संयुक्त, कंक पक्षी की तरह निर्दोष गुदाशय से युक्त एवं कबूतर की तरह प्रबल पाचन ॐ शक्ति वाले थे। उनके अपान-स्थान पक्षी की ज्यों निर्लेप थे। उनके पार्श्व भाग-पसवाड़े तथा ऊरु सुदृढ़
थे। वे छह हजार धनुष ऊँचे होते थे। म आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उन मनुष्यों के पसलियों की दो सौ छप्पन हड्डियाँ होती थीं। उनके साँस
पद्म एवं उत्पल की-सी अथवा पद्म तथा कुष्ठ नामक गन्ध-द्रव्यों की-सी सुगन्ध लिए होते थे, जिससे है
उनके मुँह सदा सुवासित रहते थे। वे मनुष्य शान्त प्रकृति के थे। उनके जीवन में क्रोध, मान, माया और प्रलोभ की मात्रा मन्द या हल्की थी। उनका व्यवहार मृदु परिणाम-सुखावह होता था। वे गुरुजनों के के
अनुशासन में रहने वाले अथवा सब क्रियाओं में गुप्त-समुचित चेष्टारत थे। वे भद्र-कल्याणभाक्, ॐ विनीत-बड़ों के प्रति विनयशील, अल्पेच्छ-अल्प आकांक्षायुक्त, अपने पास (बासी खाद्य आदि का) + संग्रह नहीं रखने वाले, भवनों की आकृति के वृक्षों के भीतर बसने वाले और इच्छानुसार काम-शब्द, 5 रूप, रस, गन्ध, स्पर्शमय भोग भोगने वाले थे।
28. [3] The human beings of Bharat area were having a fluent voice, sweet voice like that of a swan, far-reaching voice like that of a cronch bird and a voice similar to mixed sound emitting from twelve types of musical instruments. Their voice was like roaring of a lion. Their was a unique attraction in their voice and roar. Every part of their body was 45 beautiful. The structure of their body was extremely strong well joined Vajra-rishabh-narach structure. Their figure was well proportioned from
all the four sides. Their was no disease or fault in the skin of their body. 6 They were having perfect movement of the inner air in their body and 5
faultless anus like kanka bird. They were having great power of digesting food like that of a pigeon. Their discharging part was spotless द्वितीय वक्षस्कार
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Second Chapter
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