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________________ 卐 卐 5 65 5 5 5 5 595555555 5 55955 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 50 मृदुल एवं सुकुमार थीं। उनकी नासिकाएँ कनेर की कलिका जैसी अकुटिल, आगे निकली हुई, फ्र 卐 ऋजु - सीधी, तुंग-तीखी या ऊँची थीं। उनके नेत्र शरद् ऋतु के सूर्यविकासी रक्त कमल, चन्द्रविकासी 5 श्वेत कुमुद तथा कुवलय- नीलोत्पल के स्वच्छ पत्रसमूह जैसे प्रशस्त, सीधे तथा सुन्दर थे। उनके लोचन सुन्दर पलकों से युक्त, धवल, आयत - विस्तीर्ण - कर्णान्तपर्यंत तथा हल्के लाल रंग के थे। उनकी भौहें कुछ खींचे हुए धनुष के समान सुन्दर - कुछ टेढ़ी, काले बादल की रेखा के समान कृश एवं सुरचित थीं । 5 उनके कान मुख के साथ सुन्दर रूप में संयुक्त और प्रमाणोपेत-समुचित आकृति के थे, इसलिए वे बड़े सुन्दर लगते थे। उनकी कपोल - पालि परिपुष्ट तथा सुन्दर थीं। उनके ललाट चौकोर, उत्तम तथा समान थे। उनके मुख शरद् ऋतु की पूर्णिमा के समान निर्मल, परिपूर्ण चन्द्र जैसे सौम्य थे। उनके मस्तक छत्र 5 की ज्यों उन्नत थे । उनके केश काले, चिकने, सुगन्धित तथा लम्बे थे। 卐 卐 फ्र (१९) अष्टापद - द्यूतपट्ट, (२०) सुप्रतिष्ठक, (२१) मयूर, (२२) लक्ष्मी - अभिषेक, (२३) तोरण, (२४) पृथ्वी, (२५) समुद्र, (२६) उत्तम भवन, (२७) पर्वत, (२८) श्रेष्ठ दर्पण, (२९) लीलोत्सुक हाथी, (१) छत्र, (२) ध्वजा, (३) यूप - यज्ञ - स्तम्भ, (४) स्तूप, (५) दान-माला, (६) कमंडलु, 5 (७) कलश, (८) वापी - बावड़ी, (९) स्वस्तिक, (१०) पताका, (११) यव, (१२) मत्स्य, 5 (१३) कछुआ, (१४) श्रेष्ठ रथ, (१५) मकरध्वज, (१६) अंक- काले तिल, (१७) थाल, (१८) अंकुश, 卐 卐 फ्र 5 होते थे । वे विकृत अंगयुक्त या हीनाधिक अंगयुक्त, दूषित या अप्रशस्त वर्णयुक्त नहीं थीं । वे 5 व्याधिमुक्त - रोगरहित होती थीं, दौर्भाग्य - वैधव्य दारिद्र्य आदि - जनित शोकरहित थीं। उनकी ऊँचाई 5 पुरुषों से कुछ कम होती थी । स्वभावतः उनका वेष शृंगारानुरूप सुन्दर था। संगत- समुचित गति, हास्य, 卐 फ बोली, स्थिति, चेष्टा, विलास तथा संलाप में वे निपुण एवं उपयुक्त व्यवहार में कुशल थीं। उनके स्तन, वदन, हाथ, पैर तथा नेत्र सुन्दर होते थे। वे लावण्ययुक्त थीं, वर्ण, रूप, यौवन, फ्र जघन, विलास - नारीजनोचित नयन-चेष्टाक्रम से उल्लसित थीं। वे नन्दनवन में विचरणशील अप्सराओं जैसी 卐 फ मानो मानुषी अ सराएँ थीं। उनका सौंदर्य, शोभा आदि देखकर प्रेक्षकों को आश्चर्य होता था। इस प्रकार वे चित्त को प्रस् करने वाली तथा मन में बस जाने वाली थीं। 卐 (३०) बैल, (३१) सिंह, तथा (३२) चँवर इन उत्तम, श्रेष्ठ बत्तीस लक्षणों से वे युक्त थीं । 卐 卐 卐 उनकी गति हंस जैसी थी। उनका स्वर कोयल की बोली सदृश मधुर था। वे कान्तियुक्त थीं । उन्हें फ्र सब चाहते थे - कोई उनसे द्वेष नहीं करता था । न उनकी देह में झुर्रियाँ पड़ती थीं, न उनके बाल सफेद 28. [Q. 2] Reverend Sir ! What was the shape and form of women folk at that time ? [Ans.] Gautam ! The women of that period were of best order and completely beautiful. They had all the good qualities of a woman. Their feet were extremely beautiful in proper proportion, soft and tortoise like in shape. Their toes were soft, fleshy and well joint. Their nails were फ्र 卐 15 properly developed, attractive, thin, slightly red like copper, dirt-free and 5 smooth. Their shins were free from hair, round, developed and possessing good symptoms. In view of extremely fortunate character ब जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र 卐 (54) Jain Education International Jambudveep Prajnapti Sutra For Private & Personal Use Only फ्र 2 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 52 5 फ्र www.jainelibrary.org.
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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