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________________ 55555555555555555555555555555555555E ALLE LE LLELE %%%%%%%% by ELELEVEn २८. [प्र. २ ] भगवन् ! उस समय भरत क्षेत्र में स्त्रियों का आकार/स्वरूप कैसा था? 1 [उ. ] गौतम ! उस काल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ तथा सर्वांग सुन्दरियाँ थीं। वे उत्तम महिलोचित गुणों से : युक्त थीं। उनके पैर अत्यन्त सुन्दर, विशिष्ट प्रमाणोपेत, मृदुल, सुकुमार तथा कछुए के आकार के थे। उनके पैरों की अंगुलियाँ सरल, कोमल, माँसल एवं परस्पर मिली हुई थीं। अंगुलियों के नख समुन्नत, ' । देखने वालों के लिए आनन्दप्रद, पतले, ताँबे के वर्ण के हल्के लाल, मलरहित, चिकने थे। उनके जंघा। युगल रोमरहित, वर्तुल या गोल संस्थानयुक्त, उत्कृष्ट, प्रशस्त लक्षणयुक्त, अत्यन्त सुभगता के कारण । 1 अकोप्य-अद्वेष्य थे। उनके जानु-मंडल सर्वथा प्रमाणोपेत, सुगूढ़ तथा माँसलता के कारण अनुपलक्ष्य थे, ५ । सुदृढ़ स्नायु-बंधनों से युक्त थे। उनके ऊरु केले के स्तम्भ जैसे आकार से भी अधिक सुन्दर, फोड़े, फुन्सी आदि के घावों के चिह्नों से रहित, सुकुमार, सुकोमल, माँसल, अविरल-परस्पर सटे हुए जैसे, 1 सम, परिमाणयुक्त, सुगठित, सुन्दर रूप में समुत्पन्न, गोल, माँसल, अंतररहित थे। उनके श्रोणिप्रदेश घुण आदि कीड़ों के उपद्रवों से रहित-अखंडित द्यूत-फलक जैसे आकारयुक्त, प्रशस्त, विस्तीर्ण तथा स्थूल-मोटे या भारी थे। विशाल, माँसल, सुगठित और अत्यन्त सुन्दर थे। उनकी देह के मध्य भाग । वज्ररत्न-हीरे जैसे सुहावने, उत्तम लक्षणयुक्त, विकृत उदररहित, त्रिवली-तीन रेखाओं से युक्त, बलित-सशक्त अथया वलित-गोलाकार एवं पतले थे। उनकी रोमराजियाँ-सरल, बराबर, परस्पर मिली हुई, उत्तम, पतली, कृष्ण वर्णयुक्त-काली, चिकनी, स्पृहणीय, लालित्यपूर्ण-सुन्दरता से युक्त तथा ! । स्वभावतः सुन्दर, सुविभक्त, कान्त-कमनीय, शोभित और रुचिकर थीं। उनकी नाभि गंगा के भँवर की तरह गोल, दाहिनी ओर चक्कर काटती हुई तरंगों की ज्यों घुमावदार, सुन्दर, उदित होते हुए सूर्य की किरणों से विकसित होते कमलों के समान विकट तथा गम्भीर थीं। उनके कुक्षिप्रदेश-उदर के नीचे के दोनों पार्श्व अनुभट-माँसलता के कारण साफ नहीं दीखने वाले, उत्तम-स्थूल थे। उनकी देह के पार्श्व भाग-पसबाड़े क्रमशः सँकड़े, देह के परिमाण के अनुरूप सुन्दर, सुनिष्पन्न, अत्यन्त समुचित परिमाण में माँसलता लिए हुए मनोहर थे। उन स्त्रियों की देहयष्टियाँ-देहलताएँ ऐसी समुपयुक्त मांसलता लिए थीं, जिससे उनके पीछे की हड्डी नहीं दिखाई देती थीं। वे सोने की ज्यों देदीप्यमान, निर्मल, सुनिर्मित, निरुपहत-रोगरहित थीं। उनके स्तन स्वर्ण कलश सदृश थे, परस्पर समान, परस्पर मिले हुए से, सुन्दर अग्र भागयुक्त, सम श्रेणिक, गोलाकार, उभारयुक्त, कठोर तथा स्थूल थे। उनकी भुजाएँ सर्प की ज्यों क्रमशः नीचे की ओर पतली, गाय की पूँछ की ज्यों गोल, परस्पर समान, झुकी हुई, आदेय तथा सुललित थीं। उनके नख ताँबे की ज्यों कुछ-कुछ लाल थे। उनके हाथों के अग्र भाग माँसल थे। अंगुलियाँ परिपुष्ट, कोमल तथा उत्तम थीं। उनके हाथों की रेखाएँ चिकनी थीं। उनके हाथों में सूर्य, शंख, चक्र तथा : स्वस्तिक की सस्पष्ट, सविरचित रेखाएँ थीं। उनके कक्षप्रदेश. वक्षस्थल तथा वस्तिप्रदेश-गह्यप्रदेश पष्ट एवं उन्नत थे। उनके गले तथा गाल भरे हए होते थे। उनकी ग्रीवाएँ चार अंगल प्रमाणोपेत तथा उत्तम शंख की ज्यों तीन रेखाओं से युक्त होती थीं। उनकी ठुड्डियाँ माँसल-सुपुष्ट, सुगठित तथा प्रशस्त थीं। उनके अपरोष्ठ अनार के पुष्प की ज्यों लाल, पुष्ट, ऊपर के होठ की अपेक्षा कुछ-कुछ लम्बे, नीचे की ओर कुछ मुड़े हुए थे। उनके दाँत दही, जलकण, चन्द्र, कुन्द-पुष्प, वासंतिक-कलिका जैसे धवल, + । छिद्ररहित-अविरल तथा मलरहित-उज्ज्वल थे। उनके तालु तथा जिह्वा लाल कमल के पत्ते के समान तीय वनस्कार Second Chapter 通场站55555555555555$$$$$$$$%%%%%%%%% 3步步步步步步步步步步步步步%%%%%%%%%%%%%%%%% (53) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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