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तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ बहवे भेरुताल-वणाई हेरुताल-वणाई मेरुताल-वणाई पभयाल-वणाइं साल-वणाई सरल-वणाई सत्तवण्ण-वणाई पुअफलि-वणाई खज्जूरी-वणाई णालिएरी-वणाई कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूलाई जाव चिट्ठति।
तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ बहवे सेरिआगुम्मा णोमालिआगुम्मा कोरंटयगुम्मा बंधुजीवगगुम्मा मणोजगुम्मा बीअगुम्मा बाणगुम्मा कणइरगुम्मा कुज्जयगुम्मा सिंदुवारगुम्मा मोग्गरगुम्मा जूहिआगुम्मा मल्लिआगुम्मा वासंतिआगुम्मा वत्थुलगुम्मा कत्थुलगुम्मा सेवालगुम्मा अगत्थिगुम्मा मगदंतिआगुम्मा चंपकगुम्मा जाइगुम्मा णवणीइआगुम्मा कुंदगुम्मा महाजाइगुम्मा। रम्मा महामेहणिकुरंबभूआ दसवण्णं कुसुमं कुसुमेंति; जे णं भरहे वासे बहुसमरमणिज्जं भूमिभागं वायविधुअग्गसाला मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिअं करेंति।
तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तत्थ तहिं तहिं बहुईओ पउमलयाओ जाव सामलयाओ णिच्चं कुसुमिआओ, लयावण्णओ।
तीसे णं समाए भरहे वासे तत्थ तहिं तहिं बहुईओ वणराईओ पण्णत्ताओ-किण्हाओ, किण्होभासाओ जाव मणोहराओ, रयमत्तगछप्पय-कोरंग-भिंगारग-कोंडलग-जीवंजीवग-नंदीमुहकविल-पिंगलक्खग-कारंडव-चक्कवायग-कलहंस-हंस-सारस-अणेगसउणगण-मिहुणविअरिआओ सदुणइयमहुरसरणाइआओ, संपिंडिअ-दरियभमर-महुयरिपहकरपरिलिंतमत्तछप्पय-कुसुमासवलोलमहुरगुमगुमंत-गुंजंतदेसभागाओ, जाव पासाईयाओ, ४।
२६. [प्र. ] जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल के सुषम-सुषमा नामक प्रथम आरे में, जब वह अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा में था, भरत क्षेत्र का आकार, स्वरूप आदि किस प्रकार का था?
[उ. ] गौतम ! उसका भूमिभाग बड़ा समतल तथा रमणीय था। मुरज के ऊपरी भाग की ज्यों वह समतल था। नाना प्रकार की काली, (नीली, लाल, हल्दी के रंग की-पीली तथा) सफेद मणियों एवं तृणों से वह उपशोभित था। तृणों एवं मणियों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श तथा शब्द आदि अन्यत्र वर्णित के अनुसार कथनीय हैं। वहाँ बहुत से मनुष्य, स्त्रियाँ आश्रय लेते, शयन करते, खड़े होते, बैठते, देह को दायें-बायें घुमाते-मोड़ते, हँसते, रमण करते, मनोरंजन करते थे। ___ उस समय भरत क्षेत्र में उद्दाल, कुद्दाल, मुद्दाल, कृत्तमाल, नृत्तमाल, दन्तमाल, नागमाल, श्रृंगमाल, शंखमाल तथा श्वेतमाल नामक वृक्ष थे, ऐसा कहा गया है। उनकी जड़ें दर्भ तथा दूसरे प्रकार के तणों से विशुद्ध-रहित थीं। वे उत्तम मूल-जड़ों के ऊपरी भाग, कंद-भीतरी भाग तथा बीज से सम्पन्न थे। वे पत्तों, फूलों और फलों से ढके रहते तथा अतीव कान्ति से सुशोभित थे। __उस समय भरत क्षेत्र में जहाँ-तहाँ बहुत से वृक्षों के वन थे, जैसे-भेरुताल वृक्षों के वन, हेरुताल वृक्षों के वन, मेरुताल वृक्षों के वन, प्रभताल वृक्षों के वन, साल वृक्षों के वन, सरल वृक्षों के वन, सप्तपर्ण वृक्षों के वन, सुपारी के वृक्षों के वन, खजूर के वृक्षों के वन, नारियल के वृक्षों के वन थे। उनकी जड़ें दर्भ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से विशुद्ध-रहित थीं। द्वितीय वक्षस्कार
Second Chapter
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