________________
卐
5
5
555555
卐
फ्र
फ
y
[Ans.] Yes, Gautam ! They have many times in other words, an y infinite number of times been born earlier (in various forms).
卐
जम्बूद्वीप : नाम का कारण JAMBU ISLAND WHY SO NAMED
२१२. [ प्र. ] से केणट्टेणं भन्ते ! एवं बुच्चइ जम्बुद्दीवे दीवे ?
[ उ. ] गोयमा ! जम्बुद्दीवे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे तर्हि तर्हि बहवे जम्बू-रुक्खा, जम्बू–वणा, जम्बूवणसंडा, णिच्चं कुसुमिआ जाव पिंडिम - मंजरि-वडेंसगधरा सिरीए अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति ।
जम्बू सुदंसणा अणाढिए णामं देवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्ठिइए परिवसइ । से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं gas जम्बूद्दीवे दीवे इति ।
जम्बू सुदर्शना पर परम ऋद्धिशाली, पल्योपम-आयुष्ययुक्त अनाहत नामक देव निवास करता है। 5 गौतम ! इसी कारण वह (द्वीप) जम्बूद्वीप कहा जाता है।
5
212. [Q.] Reverend Sir ! Why is Jambu island so named ?
சு
[Ans.] Gautam ! There are many Jambu trees at very places in 5 Jambu island. It is full of forest of Jambu trees. There are large forest area where there are Jambu trees. There are same other trees also side 卐 by site. The tree, in those forest and forest areas are in all seasons full of flowers in plenty upto that it appear as if they are having branches in the form of branches. They appear to be very beautiful with their aura. 卐
卐
卐
२१२. [ प्र. ] भगवन् ! जम्बूद्वीप 'जम्बूद्वीप' क्यों कहलाता है ?
[.] गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से जम्बू वृक्ष हैं, जम्बू वृक्षों से आपूर्ण वन हैं, वन- खण्ड हैं- जहाँ प्रमुखतया जम्बू वृक्ष हैं, कुछ और भी तरु मिले-जुले हैं। वहाँ वनों तथा वन-खण्डों में वृक्ष सदा -सब ऋतुओं में फूलों से लदे रहते हैं । यावत् वे अपनी सुन्दर लुम्बियों तथा मंजरियों के रूप में मानो कलंगियाँ धारण किये रहते हैं । वे अपनी कान्ति द्वारा अत्यन्त शोभित होते हैं।
卐
उपसंहार समापन CONCLUSION
卐 卐
卐
२१३. तए णं समणे भगवं महावीरे मिहिलाए णयरीए माणिभद्दे चेइए बहूणं समणाणं, लहूणं 卐 5 समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं, बहूणं देवाणं, बहूणं देवीणं मज्झगए एवमाइक्खइ, एवं 5 भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ जम्बूदीवपण्णत्ती णामत्ति अज्जो ! अज्झयणे अहं च हेउं च पसिणं च 卐 कारणं च वागरणं च भुज्जो २ उवदंसेइ त्ति बेमि ।
卐
फ्र
॥ जंबुद्दीवपण्णत्ती समत्ता ॥
२१३. सुधर्मा स्वामी ने अपने अन्तेवासी जम्बू को सम्बोधित कर कहा- आर्य जम्बू ! मिथिला नगरी के अन्तर्गत मणिभद्र चैत्य में बहुत-से श्रमणों, बहुत-सी श्रमणियों, बहुत-से श्रावकों, बहुत-सी श्राविकाओं, बहुत-से देवों, बहुत-सी देवियों की परिषद् के बीच श्रमण भगवान महावीर ने
सप्तम वक्षस्कार
(603)
Jain Education International
25 55 55 5 5 5 5 5 555 559757555 5 5 5 5 555 5 5 5 5595
५
५
Seventh Chapter
For Private & Personal Use Only
ॐ
फ्र
फ
57
卐
फ्र
卐
www.jainelibrary.org