SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 955555555%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% 8455555555555555555555555555555555555555555555553 ॐ पक्षी, सर्प, किन्नर, कस्तूरी-मृग, शरभ-अष्टापद, चँवर, हाथी, वनलता यावत् आदि पद्मलता के चित्र है अंकित हैं। उसकी स्तूपिका-शिरोभाग स्वर्ण, मणि और रत्नों से निर्मित है। जैसा कि अन्यत्र वर्णन है, ॐ वह सिद्धायतन एक प्रकार की पंचरंगी मणियों से विभूषित है। उसके शिखरों पर अनेक प्रकार की है। पंचरंगी ध्वजाएँ तथा घण्टे लगे हैं। वह सफेद रंग का है। वह इतना चमकीला है कि उससे किरणें प्रस्फुटित होती हैं। वहाँ की भूमि गोबर आदि से लिपी है। उसकी दीवारें खड़िया, कलई आदि से पुती हैं , है यावत् उसकी दीवारों पर गोशीर्ष चन्दन तथा सरस-आर्द्र लाल चन्दन के हाथ की छापें लगी हैं। उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। वे द्वार पाँच सौ धनुष ऊँचे और ढाई सौ धनुष चौड़े हैं। उनका उतना ही चौड़ा प्रवेश द्वार है। उनकी स्तूपिकाएँ श्वेत उत्तम स्वर्ण-निर्मित हैं। म (देखें-राजप्रश्नीयसूत्र १२१-१२३) उस सिद्धायतन के अन्तर्गत बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग है, जो मृदंग आदि के (शिरोभाग) के ऊपरी भाग के सदृश समतल है। उस सिद्धायतन के बहत समतल और सुन्दर भमिभाग के ठीक बीच में देवच्छन्दक-देवासन-विशेष है। वह पाँच सौ धनुष लम्बा, पाँच सौ धनुष चौड़ा और कुछ अधिक पाँच 5 सौ धनुष ऊँचा है, सर्वरत्नमय है। यहाँ तीर्थंकरों की दैहिक ऊँचाई जितनी ऊँची एक सौ आठ जिन+ प्रतिमाएँ हैं। (उन जिन-प्रतिमाओं की हथेलियाँ और पगलियाँ तपनीय-स्वर्ण-निर्मित हैं।) उनके नख ॐ अन्तःखचित लोहिताक्ष-लाल रत्नों से युक्त अंक रत्नों द्वारा बने हैं। उनके चरण, गुल्फ-टखने, जंघाएँ, जानु-घुटने, उरु तथा उनकी देह-लताएँ कनकमय-स्वर्ण-निर्मित हैं, श्मश्रु रिष्टरत्न निर्मित है, नाभिक तपनीयमय है, रोमराजि-केशपंक्ति रिष्टरत्नमय है, स्तन के अग्र भाग एवं श्रीवत्स-वक्षःस्थल पर बने ॐ चिह्न-विशेष तपनीयमय हैं, भुजाएँ, ग्रीवाएँ कनकमय हैं, ओष्ठ प्रवाल-मूंगे से बने हैं, दाँत स्फटिक ॥ निर्मित हैं, जिह्वा और तालु तपनीयमय हैं, नासिका कनकमय है। उनके नेत्र रत्नमय अंक-रत्नों से बने हैं, तदनुरूप पलकें हैं, नेत्रों की कनीनिकाएँ, नेत्रों के पर्दे तथा भौंहें रिष्टरत्नमय हैं, गाल, कान तथा + ललाट कनकमय हैं, खोपड़ी वज्ररत्नमय-हीरकमय है, केशान्त तथा केशभूमि-मस्तक की चाँद तपनीयमय है, मस्तक के ऊपरी भाग रिष्टरत्नमय हैं। जिन-प्रतिमाओं में से प्रत्येक के पीछे दो-दो छत्रधारक प्रतिमाएँ हैं। वे छत्रधारक प्रतिमाएँ बर्फ, चाँदी, कुंद तथा चन्द्रमा के समान उज्ज्वल, कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त, सफेद छत्र लिए हुए म आनन्दोल्लास की मुद्रा में स्थित हैं। ____ उन जिन-प्रतिमाओं के दोनों तरफ दो-दो चँवरधारक प्रतिमाएँ हैं। वे चँवरधारक प्रतिमाएँ । ॐ चन्द्रकांत, हीरक, वैडूर्य तथा नाना प्रकार की मणियों, स्वर्ण एवं रत्नों से खचित, बहुमूल्य तपनीय म सदृश उज्ज्वल, चित्रित दण्डों सहित-हत्थों से युक्त, देदीप्यमान, शंख, अंक-रत्न, कुन्द, जल-कण, रजत, मथित अमृत के झाग की ज्यों श्वेत, चाँदी जैसे उजले, महीन, लम्बे बालों से युक्त धवल चॅवरों 卐 को सोल्लास धारण करने की मुद्रा में या भावभंगी में स्थित हैं। ॐ उन जिन-प्रतिमाओं के आगे दो-दो नाग-प्रतिमाएँ, दो-दो यक्ष-प्रतिमाएँ, दो-दो भूत-प्रतिमाएँ 5 तथा दो-दो आज्ञाधारा-प्रतिमाएँ संस्थित हैं, जो विनयावनत, चरणाभिनत-चरणों में झुकी हुई और जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (24) Jambudveep Prajnapti Sutra 日历步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙牙牙 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy