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[Q. 15] Reverend Sir ! How much part of the perimeter of a solar 4 round does the sun cover in one muhurat ?
[Ans.] Gautam ! It covers 1830, th part of the perimeter of the round in which it travels.
[Q. 16] Reverend Sir ! How much part of their rounds do the constellations cover in one muhurat in their movement ?
[Ans.] They cover 1835. th part of the constellation round in which the respective constellation is moving.
विवेचन : नक्षत्र २८ हैं। प्रत्येक का एक-एक मण्डल होने से नक्षत्रमण्डल भी २८ कहे जाने चाहिए, किन्तु यहाँ आठ नक्षत्रमण्डल के रूप में कथन उनके संचरण के आधार पर हैं। १, ३, ६, ७, ८, १०, ११, १५-इन आठ मण्डलों में चन्द्रमा को कभी भी नक्षत्र का विरह नहीं होता। क्योंकि वहाँ नक्षत्रों का भ्रमण हर समय रहता है। २, ४, ५, ९, १२, १३, १४-इन सात मण्डलों में सदा नक्षत्र का विरह रहता है। १, ३, ११, १७-ये चार मण्डल राजमार्ग की तरह सामान्य हैं। इनमें चन्द्र, सूर्य तथा नक्षत्र सभी का गमन होता है।
-बृहत्संग्रहणी, पृ. २६६ Elaboration-Constellations are 28. Each constellation moves only in one round. So the total number of constellation rounds should be 28. 4 Here eight constellation rounds have been mentioned on the basis of 4
their movement. The moon is never devoid of constellation in the eight
rounds namely round number 1, 3, 6, 7, 8, 10, 11 and 15 because the ___constellations are always moving here. In seven rounds namely 2, 4, 5, 9, 卐 12, 13 and 14 there is always absence of constellation four rounds
namely 1, 3, 11 and 17 are common like a highway. The moon, the sun and the constellation move in this area.
-Brihat Sangrahani, P. 2 सूर्य-चन्द्र उद्गम RISING OF SUN-MOON
१८३. [प्र. ] जम्बुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिआ उदीणपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमागच्छंति १, पाईणदाहिणमुग्गच्छ दाहिणपडीणमागच्छंति २, दाहिणपडीणमुग्गच्छ पडीणउदीणमागच्छंति ३,
पडीणउदीणमुग्गच्छ उदीण-पाईणमागच्छंति ४ ? - [उ. ] हंता गोयमा ! जहा पंचमसए पढमे उद्देसे णेवऽत्थि ओसप्पिणी अवट्ठिए णं तत्थ काले
पण्णत्ते समणाउसो! ___इच्चेसा जम्बुदीवपण्णत्ती सूरपण्णत्ती वत्थुसमासेणं सम्मत्ता भवई।
[प्र. ] जम्बुद्दीवे णं भंते ! दीवे चंदिमा उदीणपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमागच्छंति जहा + सूरवत्तव्बया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव 'अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो !'
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| सप्तम बक्षरकार
(517)
Seventh Chapter
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