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5 लम्बाई ४५,००० योजन है। उसकी दो बाहाएँ अनवस्थित-अनियत परिमाणयुक्त हैं। वे सर्वाभ्यन्तर तथा सर्वबाह्य के रूप में अभिहित हैं। उनमें सर्वाभ्यन्तर बाह्य की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में 5 ९, ४८६० योजन है।
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[प्र. २ ] भगवन् ! यह परिक्षेपविशेष परिधि का परिमाण किस आधार पर कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! जो मेरु पर्वत की परिधि है, उसे ३ गुणित किया जाए। गुणनफल को १० का 5
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भाग दिया जाए। उसका भागफल (मेरु पर्वत की परिधि ३१,६२३ योजन x ३ ९,४८६६०) इस परिधि का परिमाण है।
उसकी सर्वबाह्य बाहा की परिधि लवणसमुद्र के अन्त में ९४,८६८, योजन- परिमित है ।
[ प्र. ३ ] भगवन् ! इस परिधि का यह परिमाण कैसे बतलाया गया है ?
[उ. ] गौतम ! जो जम्बूद्वीप की परिधि है, उसे ३ से गुणित किया जाए, गुणनफल को १० से 5
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विभक्त किया जाए। वह भागफल ( जम्बूद्वीप की परिधि ३, १६, २२८ × ३ ९४,८६८) इस परिधि का परिमाण है।
[प्र. ५ ] भगवन् ! तब अन्धकार- स्थिति कैसा संस्थान - आकार लिए होती है ?
[उ. ] गौतम ! अन्धकार -स्थिति तब ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प का संस्थान लिए होती है, वैसे आकार
सप्तम वक्षस्कार
९४,८६९ : १० =
९,४८,६८४ : १० =
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[प्र.४ ] भगवन् ! उस समय ताप - क्षेत्र की लम्बाई कितनी होती है ?
[ उ. ] गौतम ! उस समय ताप - क्षेत्र की लम्बाई ७८,३३३ योजन होती है।
मेरु से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त ४५,००० योजन तथा लवणसमुद्र के विस्तार २,००,००० योजन के 5 भाग ३३,३३३ योजन का जोड़ ताप-क्षेत्र की लम्बाई है। उसका संस्थान गाड़ी की धुरी के अग्र भाग जैसा होता है।
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Seventh Chapter
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की होती है। वह भीतर संकीर्ण-सँकड़ी, बाहर विस्तीर्ण - चौड़ी ( भीतर से वृत्त - अर्द्ध-वलयाकार, बाहर
से पृथुलता लिए विस्तृत, भीतर से अंकमुख - पद्मासन में अवस्थित पुरुष के उत्संग-गोदरूप 5 आसन-बन्ध के मुख-अग्र भाग की ज्यों तथा बाहर से गाड़ी की धुरी के
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अग्र भाग की ज्यों होती है। 卐 योजन - प्रमाण है।
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उसकी सर्वाभ्यन्तर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में ६, ३२४ [प्र. ६ ] भगवन् ! यह परिधि का परिमाण कैसे है ?
[उ. ] गौतम ! जो मेरु पर्वत की परिधि है, उसे दो से गुणित किया जाए, गुणनफल को १० से
5 विभक्त किया जाए, उसका भागफल ( मेरु- परिधि ३१, ६२३ योजन x २ =
६, ३२४) इस परिधि का परिमाण है।
उसकी सर्वबाह्य बाहा की परिधि लवणसमुद्र के अन्त में ६३, २४५० योजन- परिमित है । [प्र. ७ ] भगवन् ! यह परिधि - परिमाण किस प्रकार है ?
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६३, २४६ ÷ १० = 卐
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