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________________ 图555555555555555555555555555555555 [प्र. ६ ] जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया केमहालए दिवसे + भवइ केमहालिया राई भवइ ? । [उ. ] गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ चाहिं एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगसहिभागमुहुत्तेहिं अहिए इति। एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे सूरिए ॐ तयाणंतराओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकममाणे संकममाणे दो दो एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं एगमेगे मंडले रयणिखेत्तस्स निवुद्धमाणे २ दिवसखेत्तस्स अभिवुद्धेमाणे २ सब्बभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ त्ति। [७] जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वन्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया ॥ णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं राइंदिअसएणं तिण्णि छावढे एगसविभागमुहुत्तसए ॐ रयणिखेत्तस्स णिबुद्धत्ता दिवसखेत्तस्स अभिववेत्ता चारं चरइ। एस णं दोच्चे छम्मासे। एस णं दुच्चस्स छम्मास्स पज्जवसाणे। एस णं आइच्चे संवच्छरे। एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते ८।। १६७. [प्र. १ ] भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को पार करता हुआ गति करता है, तब ऊ उस समय दिन कितना बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? [उ.] गौतम ! उत्तमावस्था प्राप्त, उत्कृष्ट अधिक से अधिक १८ मुहूर्त का दिन होता है, जघन्यकम से कम १२ मुहूर्त की रात होती है। वहाँ से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नये संवत्सर में प्रथम अहोरात्र में दूसरे आभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है। [प्र. २ ] भगवन् ! जब सूर्य दूसरे आभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब दिन कितना बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? [उ. ] गौतम ! तब मुहूर्तांश कम १८ मुहूर्त का दिन होता है, ३, मुहूर्तांश अधिक १२ मुहूर्त की रात होती है। [प्र. ३] वहाँ से निष्क्रमण करता हआ सूर्य दूसरे अहोरात्र में (दूसरे आभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर) गति करता है, तब दिन कितना बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? [उ. ] गौतम ! तब , मुहूर्तांश कम १८ मुहूर्त का दिन होता है, । मुहूर्तांश अधिक १२ मुहूर्त की होती है। इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ, पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल का संक्रमण करता हुआ सूर्य प्रत्येक के मण्डल में दिवस क्षेत्र-दिवस-परिमाण को २ महशि कम करता हआ तथा रात्रि-परिमाण को २ के मुहूर्तांश बढ़ाता हुआ सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है। जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल से सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब सर्वाभ्यन्तर म मण्डल का परित्याग कर १८३ अहोरात्र में दिवस-क्षेत्र में ३६६ संख्या-परिमित है, मुहूर्तांश कम कर म तथा रात्रि-क्षेत्र में इतने ही मुहूर्तांश बढ़ाकर गति करता है। 3 [प्र. ४ ] भगवन् ! जब सूर्य सर्वबाह्य मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब दिन कितना + बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? 卐5555555555555555555555555555555555555555555555 ))))555555555555555)))))))) 卐)))))))))))) | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (484) Jambudveep Prajnapti Sutra 95555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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