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________________ ) ))) ) ))) )) )) ))))) )) 85555555555555555555555555555555 (Ans.] Gautam ! The length and breadth of the third from the Si outermost round is 1,00,648 yojan and its perimeter is 3,18,279 yojans. 41 Thus moving in this order the sun entering in its orbit from one round to the other reduces the width by 535 yojans, and the perimeter of the round by 18 yojans. After reaching the innermost round it moves ahead (outwards). विवेचन : सूत्र १६५ में सूर्य-मण्डल का कथन है। मण्डल क्या है? उसका प्रमाण क्या है ? इत्यादि विषयों पर विस्तारपूर्वक स्पष्टीकरण बृहत्संग्रहणी लोक प्रकाश आदि ग्रन्थों में मिलता है। ____ सम्पूर्ण ज्योतिष मण्डल मेरु पर्वत के चारों ओर परिभ्रमण करता है, जिसे प्रदक्षिणा कहा जाता है। चन्द्र एवं सूर्य का मेरु के प्रदक्षिणा करने का जो चक्राकार (वर्तुलाकार) नियत मार्ग है, उसे 'मण्डल' कहा जाता है। सूर्य-चन्द्र मेरु पर्वत से कम से कम ४४,८२० योजन की अबाधा (दरी) पर रहकर प्रदक्षिणा करते हैं। 4 एक प्रदक्षिणा पूर्ण होने का एक मण्डल माना गया है। एक मण्डल से दूसरे मण्डल का आंतरा-दूरी दो योजन की रहती है। सूर्य के १८४ मण्डल तथा चन्द्र के १५ मण्डल हैं। चन्द्रविमान की गति बहुत धीमी है, जबकि सूर्यविमान की गति शीघ्र होती है। इस कारण ॐ चन्द्र-मण्डल से सूर्य-मण्डल बहुत अधिक बताये हैं। चन्द्र और सूर्य का कुल मण्डल क्षेत्र (चार क्षेत्र) ५१०६६ ॥ म योजन प्रमाण है। उसमें १८० योजन प्रमाण चार क्षेत्र जम्बूद्वीप में तथा ३३०० योजन क्षेत्र लवणसमुद्र में है। चन्द्र-मण्डल के एक अन्तर का प्रमाण ३५ योजन से कुछ अधिक है, जबकि सूर्य-मण्डल के एक अन्तर ॐ का प्रमाण दो योजन है। चन्द्र के १५ मण्डलों में से ५ मण्डल जम्बूद्वीप में और १० मण्डल लवणसमुद्र में पड़ते हैं, जबकि सूर्य के ६५ मण्डल जम्बूद्वीप में और ११९ मण्डल लवणसमुद्र में पड़ते हैं। सूर्य के १८४ मण्डल के आन्तरे १८३ होते हैं। प्रत्येक सूर्य-मण्डल का अन्तर क्षेत्र दो योजन होने से फ़ (१८३ x २) = ३६६ योजन आया। प्रत्येक मण्डल का विस्तार एक योजन का भाग प्रमाण होता है। इस प्रकार ३६६ योजन में १४४-१४८ भाग जोड़ने से चार क्षेत्र (प्रदक्षिणा मार्ग) ५१० योजन ४८ भाग आता है। मेरु पर्वत के सबसे निकटवर्ती भीतरी मण्डल को सर्वाभ्यन्तर मण्डल तथा सबसे दूर बाहरी मण्डल को सर्वबाह्य , मण्डल कहा जाता है। सूर्य,निरन्तर सर्वाभ्यन्तर मण्डल से सर्वबाह्य मण्डल की ओर तथा पुनः सर्वबाह्य मण्डल से सर्वाभ्यन्तर मण्डल की ओर गति करता रहता है। (सम्बन्धित विषय को विस्तारपूर्वक समझने के लिए देखेंबृहत्संग्रहणी रल, आचार्य यशोदेव सूरि कृत हिन्दी व्याख्या, पृ. २२५ से २४० तक तथा संलग्न चित्र) Elaboration : In Sutra 165, the orbit of the sun has been described. What is round of the orbit ? What is its size ? The detailed classification of such subjects is available in Brihat Sangrahani Lok Prakash and such like Volumes. The entire Stellar (Jyotish) system moves around Meru mountain and it is called taking rounds in circular manner (pradakshina). The circular path of the moon and the sun while moving around Meru mountain which is in a fixed orders is called Mandal. 卐5555)555555555555555555555555555 55555555555555555 ) )) ))) )) ))) )) )) ))) ) 5 सप्तम वक्षस्कार (477) Seventh Chapter 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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