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________________ ahhhhh फफफफफफफफफफफफ 卐 卐 5 वर्तुलाकार लोहासन बत्तीस भद्रासन भगवान तीर्थंकर के जन्म-भवन में लाओ। लाकर मुझे सूचित करो। वैश्रमण देव (देवेन्द्र देवराज) शक्र के आदेश को विनयपूर्वक स्वीकार करता है। स्वीकार कर वह फ जृम्भक देवों को बुलाता है। बुलाकर उन्हें कहता है- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही बत्तीस करोड़ रौप्य - मुद्राएँ आदि वस्तुएँ भगवान तीर्थंकर के जन्म-भवन में लाओ। लाकर मुझे अवगत कराओ। वैश्रमण देव द्वारा यों कहे गये जृम्भक देव हर्षित एवं परितुष्ट होते हैं। वे शीघ्र ही बत्तीस करोड़ रौप्य - मुद्राएँ आदि भगवान तीर्थंकर के जन्म-भवन में ले आते हैं। लाकर वैश्रमण देव को सूचित करते हैं कि उनके आदेश के अनुसार वे कर चुके हैं। तब वैश्रमण देव जहाँ देवेन्द्र देवराज शक्र होता है, वहाँ 5 आता है, कृत कार्य से उन्हें अवगत कराता 1 तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शुक्र अपने आभियोगिक देवों को बुलाता है और उन्हें कहता 5 है - देवानुप्रियो ! शीघ्र ही भगवान तीर्थंकर के जन्म-नगर के तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों एवं विशाल मार्गों में जोर-जोर से उद्घोषित करते हुए कहो - 'बहुत से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क 5 तथा वैमानिक देव - देवियों ! आप सुनें-आप में से जो कोई तीर्थंकर या उनकी माता के प्रति अपने मन अशुभ भाव लायेगा - दुष्ट संकल्प करेगा, 'आजओ' नामक वनस्पति की मंजरी की ज्यों उसके मस्तक सौ टुकड़े हो जायेंगे।' यह घोषित कर अवगत कराओ कि वैसा कर चुके हैं। तब वे आभियोगिक देव जो आज्ञा' यों कहकर देवेन्द्र देवराज शक्र का आदेश स्वीकार करते हैं। स्वीकार कर वहाँ से चले जाते हैं। वे शीघ्र ही भगवान तीर्थंकर के जन्म-नगर में आते हैं। वहाँ तिकोने 5 स्थानों, तिराहों, चौराहों और विशाल मार्गों में यों घोषित करते हैं - बहुत से भवनपति यावत् वाणव्यन्तर, देवों ! देवियों ! आप में से जो कोई तीर्थंकर या उनकी माता के प्रति अपने में मन में अशुभ भाव लायेगा - उसके मस्तक के सौ टुकड़े हो जायेंगे । ऐसी घोषणा कर वे आभियोगिक देव देवराज शक्र को अवगत कराते हैं । 5 तदनन्तर बहुत से भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक देव भगवान तीर्थंकर का जन्मोत्सव मनाते हैं। तत्पश्चात् जहाँ नन्दीश्वर द्वीप है, वहाँ आते हैं। वहाँ आकर अष्टदिवसीय विराट् फ जन्म - महोत्सव आयोजित करते हैं। वैसा करके जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में चले जाते हैं। 卐 फ्र फ्र ॥ पंचम वक्षस्कार समाप्त ॥ फ्र 156. Thereafter Shakrendra creates five Shakra by fluid process. One 5 Shakra picks up the Tirthankar with the palms of his hands. The second one holds the umbrella spreaded behind the Lord. Two Shakra move the wheats on the two sides. One Shakra stands in front holding Vajra in his 5 hand. 5 फ Thereafter Shakra with his 84,000 co-chiefs, other Bhavanpati, 5 paripatetic, stellar and Vaimanik gods and goddesses and the heavenly जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Jambudveep Prajnapti Sutra (446) ************************************ Jain Education International For Private & Personal Use Only 5 www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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