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दप्पण १, भद्दासणं २, वद्धमाण ३, वरकलस ४, मच्छ ५, सिरिवच्छा ६ । सोत्थिय ७, णन्दावत्ता ८, लिहिआ अट्ठट्ठमंगलगा ॥१॥
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लिहिऊण करेइ उवयारं, किं ते ? पाडल - मल्लिअ - चंपगड - सोग - पुन्नाग - चूअमंजरिनवमालिअ - बउल-तिलय - कणवीर - कुंद - कुज्जग - कोरंट-पत्त - दमणग- वरसुरभि - गन्धगन्धिअस्स, कयग्गह- गहि अकरयल - पन्भट्टविप्पमुक्कस्स, दसद्धवण्णस्स, कुमणि अर तत्थ चित्तं 5 सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिकरं करेत्ता चन्दप्पभ - रयण - वइरवेरुलिअ - विमलदण्डं, 卐 कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं, कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्क धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टि विणिम्मुअंतं, 5 वेरुलिअमयं, कडुच्छुअं पग्गहित्तु पयएणं धूवं दाऊण जिणवरिंदस्स सत्तट्ट पयाई ओसरित्ता दसंगुलिअं 5 अंजलिं करिअ मत्थयंमि पयओ अट्ठसय - विसुद्धगन्धजुत्तेर्हि, महावित्तेर्हि अपुणरुतेहिं, अत्थजुत्तेर्हि संधुणइ 5 संणित्ता वामं जाणुं अंचेइ अंचित्ता करयलपरिग्गहिअं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी
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मोत्थु सिद्ध - बुद्ध - णीरय- समण - सामाहिअ - समत्त - समजोगि - सल्लगत्तण- णिब्भय - 5 णीरागदोस - णिम्मम - णिस्संग - णीसल-माणमूरण- गुणरयण - सीलसागर - मणंत - मप्पमेय - भविअ - फ्र धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी, णमोऽत्थु ते अरहओत्ति कट्टु एवं वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे 5 णारे सुस्सूसमाणे जाव पज्जुवासइ ।
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एवं जहा अच्चुअस्स तहा जाव ईसाणस्स भाणिअव्वं, एवं भवणवइ - वाणमन्तर - जोइसिआ य सूरपज्जवसाणा सएणं परिवारेणं पत्तेअं २ अभिसिंचंति ।
तए णं से ईसाणे देविन्दे देवराया पंच ईसाणे विउब्बर विउव्वित्ता एगे ईसाणे भगवं तित्थयरं करयलसंपुडेणं गिues गिण्हित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे, एगे ईसाणे पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेन्ति, एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिट्ठा ।
तणं से सक्के देविन्दे, देवराया आभिओगे देवे सद्दावेइ २ त्ता एसोवि तह चेव अभिसेआणत्तिं देइ 55 तेऽवि तह चेव उवणेन्ति । तए णं से सक्के देविन्दे, देवराया भगवओ तित्थयरस्स चउद्दिसिं चत्तारि धवलवसभे विउब्वे । सेए संखदलविमल - निम्मलदधिघणगोखीरफेणरयणिगरप्पगासे पासाईए दरसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ।
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तए णं तेसिं चउन्हं धवलवसभाणं अट्ठहिं सिंगेहिंतो अट्ठ तोअधाराओ णिग्गच्छन्ति, तए णं ताओ अट्ठ 5 तोअधाराओ उद्धं वेहासं उप्पयन्ति उप्पइत्ता एगओ मिलायन्ति २ त्ता भगवओ तित्थयरस्त मुद्राणंसि 5 निवयंति । तए णं सक्के देविन्दे, देवराया चउरासीईए सामाणिअसाहस्सीहिं एअस्सवि तहेव अभिसेओ 卐 भाणि जाव मोत्थु ते अरहओत्ति कट्टु वंदइ णमंसइ जाव पज्जुवासइ।
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१५५. तब वह अच्युतेन्द्र सपरिवार विपुल, बृहत् अभिषेक - सामग्री द्वारा स्वामी का भगवान 卐 तीर्थंकर का अभिषेक करता है। अभिषेक कर वह हाथ जोड़ता है, अंजलि बाँधे मस्तक से लगाता है, 5 'जय-विजय' शब्दों द्वारा भगवान की वर्धापना करता है, इष्ट-प्रिय वाणी द्वारा 'जय जय' शब्द
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
Jambudveep Prajnapti Sutra
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