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89555555555))))))) ))))) )))))) भ धारण किये। सुसज्जित, सर्वविधि अलंकारों से विभूषित पाँच सेनाएँ, पाँच सेनापति-देव प्रस्थान
करते हैं। ॐ फिर बहुत से आभियोगिक देव-देवियाँ अपने-अपने रूप, (अपने-अपने वैभव, अपने-अपने) म उपकरण सहित देवेन्द्र, देवराज शक्र के आगे-पीछे यथाक्रम प्रस्थान करते हैं। तत्पश्चात्
सौधर्मकल्पवासी अनेक देव-देवियाँ सब प्रकार की समृद्धि के साथ विमानारूढ़ होते हैं, देवेन्द्र, देवराज ऊ शक के आगे-पीछे तथा दोनों ओर प्रस्थान करते हैं। के इस प्रकार विमानस्थ देवराज शक्र पाँच सेनाओं से परिवृत्त (पूर्व वर्णित वैभव के साथ) चौरासी हजार सामानिक देवों तथा अन्य बहत से देवों और देवियों से संपरिदत्त. सब प्रकार की ऋद्धि-वैभव के साथ, वाद्य -निनाद के साथ सौधर्मकल्प के बीचोंबीच होता हुआ, दिव्य देव-ऋद्धि उपदर्शित करता हुआ, जहाँ सौधर्मकल्प का उत्तरी निर्याण-मार्ग-बाहर निकलने का रास्ता है, वहाँ आता है। वहाँ
आकर एक-एक लाख योजन-प्रमाण विग्रहों द्वारा चलता हआ. उत्कष्ट, तीव्र देव-गति द्वारा आगे जबढ़ता तिरछे असंख्य द्वीपों एवं समुद्रों के बीच से होता हुआ, जहाँ नन्दीश्वर द्वीप है, दक्षिण-पूर्व
आग्नेय कोणवर्ती रतिकर पर्वत है, वहाँ आता है। जैसा सूर्याभदेव का वर्णन है, आगे वैसा ही शक्रेन्द्र का समझना चाहिए।
फिर शक्रेन्द्र दिव्य देव ऋद्धि का दिव्य यान-विमान का प्रतिसंहरण करता है-विस्तार को समेटता है। वैसा कर, जहाँ (जम्बूद्वीप, भरत क्षेत्र में) भगवान तीर्थंकर का जन्म-नगर, जन्म-भवन होता है, ॐ वहाँ आता है। आकर वह दिव्य यान-विमान द्वारा भगवान तीर्थंकर के जन्म-भवन की तीन बार
आदक्षिण-प्रदक्षिणा करता है। वैसा कर भगवान तीर्थंकर के जन्म-भवन के उत्तर-पूर्व में-ईशान कोण में अपने दिव्य विमान को भूमितल से चार अंगुल ऊँचा ठहराता है। विमान को ठहराकर अपनी आठ ॐ अग्रमहिषियों, गन्धर्वानीक तथा नाट्यानीक नामक दो अनीक-सेनाओं के साथ उस दिव्य-यान-विमान +से पूर्वदिशावर्ती तीन सीढ़ियों द्वारा नीचे उतरता है। फिर देवेन्द्र, देवराज शक्र के चौरासी हजार
सामानिक देव उत्तरदिशावर्ती तीन सीढ़ियों द्वारा उस दिव्य यान-विमान से नीचे उतरते हैं। बाकी के ॐ देव-देवियाँ दक्षिण-दिशावर्ती तीन सीढ़ियों द्वारा यान-विमान से नीचे उतरते हैं।
150. [1] Shakrendra was very much pleased to hear from god Palak that the divine vehicle had been built. He then creates a shape fit for 45 going to the Bhagavan with fluid process and beautiful with all divine 457 decorations. Thereafter he moves around that divine vehicle with his y family, the eight chief-goddesses, the dramatic party, the musicians and
then rides on it through the three-ring stairs in the east. He then sits on the scat facing east. Similarly the co-chiefs get into the vehicle through
the three-ring stairs in the north and take their seats already 4 earmarked. The remaining gods and goddesses get into it through the 'i three-ring stairs in the south and then take their seats.
After the boarding of Shakrendra in this manner, eight ominous symbols more ahead. Thereafter as a mark of good omen, at the time of
卐5555555555555)55555555555555555555555555555555558
जक
जापंचम वक्षस्कार
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Fifth Chapter
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