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________________ 5555555555555555555555555555555555555555))))))) 555555555555555555555555555555555555E से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसाहस्सीणं चउरासीए सामाणिअसाहस्सीणं, तायत्तीसाए । तायत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्डं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिहं परिसाणं, सत्तण्हं है अणिआणं, सत्तण्हं अणिआहिवईणं, चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अन्नेसिं च बहूणं ॐ सोहम्मकप्पवासीणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं, पोरेवच्चं, सामित्तं, भट्टित्तं, महत्तरगत्तं, आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-पट्ट-गीय-वाइय-तंतीतल-तालतुडिअ-घणमुइंग卐 पडुपडहवाइअ-रवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। तए णं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणं चलइ। तए णं से सक्के (दविंदे, देवराया) आसणं म चलिअं पासइ पासित्ता ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ आभोइत्ता हद्वतुट्ठचित्ते, आनंदिए पीइमणे, परमसोमणस्सिए, हरिसवसविसप्पमाणहिअए, धाराहय-कयंबकुसुम-चंचुमालइअॐ ऊसविअ-रोमकूवे, विअसिअ-वरकमलनयणवयणे, पचलिअ-वरकडगतुडिअ-केऊ रमउडे, कुण्डलहारविरायंतवच्छे, पालम्बपलम्बमाण-घोलंतभूसणधरे। ज ससंभमं तुरिअं चवलं सुरिंदे सीहासणाओ अब्भुढेइ, २ ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ २ त्ता वेरुलिअ-वरिद्वरिट्ठअंजण-निउणोविअमिसिमिसिंत-मणिरयणमंडिआओ पाउआओ ओमुअइ २ ता एगसाडिअं उत्तरासंगं करेइ २ ता अंजलिमउलियग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ २ ता दाहिणं जाणुं धरणीअलंसि साहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलंसि ॐ निवेसेइ २ त्ता ईसिं पच्चुण्णमइ २ त्ता कडगतुडिअथंभिआओ भुआओ साहरइ २ ता करयलपरिग्गहिअं म सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी+ णमोऽत्थु णं अरहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं, तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुण्डरीआणं, पुरिसवरगन्धहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगणाहाणं, लोगहियाणं, के लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरन्तचक्कवट्टीणं, दीवो, ताणं, सरण-गई-पइट्ठा-अप्पडिहयवर-नाण-दंसण-धराणं, विअट्टछउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, जतिनाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं, सम्वन्नूणं, सबदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ मणन्त-मक्खय-मब्बावाह-मपुणरावित्ति-सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं णमो जिणाणं, जिअभयाणं। म णमोऽत्थु णं भगवओ तित्थगरस्स आइगरस्स (सिद्धिगइणामधेयं ठाणं) संपाविउकामस्स वदामि णं ॐ भगवन्तं तत्थगयं, इहगए, पासउ मे भयवं ! तत्थगए इहगयंति कटु वन्दइ णमंसइ णमंसित्ता मसीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे। ऊ १४८. [ १ ] उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि- (हाथ में वज्र धारण + किये), पुरन्दर-पुर-असुरों के नगर-विशेष के दारक-विध्वंसक, शतक्रतु-पूर्व जन्म में कार्तिक श्रेष्ठी के भव में सौ बार श्रावक की पंचमी प्रतिमा के परिपालक, सहस्राक्ष-हजार आँखों वाले-अपने पाँच सौ ऊ मन्त्रियों की अपेक्षा हजार आँखों वाले, मघवा-मेघों के-बादलों के नियन्तः, पाकशासन-पाक नामक | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (408) Jambudveep Prajnapti Sutra 听听听听FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF。 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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