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________________ FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhhhhhhhh 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步555555555555 5 (१) नन्दोत्तरा, (२) नन्दा, (३) आनन्दा, (४) नन्दिवर्धना, (५) विजया, (६) वैजयन्ती, (७) ! क जयन्ती, तथा (८) अपराजिता। अवशेष वर्णन पूर्ववत् है। तीर्थंकर तथा उनकी माता के श्रृंगार आदि में उपयोगी, दर्पण हाथ में के लिए वे भगवान तीर्थंकर एवं उनकी माता के पूर्व में आगान-परिगान करने लगती हैं। उस काल, उस समय दक्षिण रुचककूट-निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएँ अपने-अपने कूटों में + सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं (१) समाहारा, (२) सुप्रदत्ता, (३) सुप्रबुद्धा, (४) यशोधरा, (५) लक्ष्मीवती, (६) शेषवती, (७) के चित्रगुप्ता, तथा (८) वसुन्धरा। आगे का वर्णन पूर्वानुरूप है। वे भगवान तीर्थंकर की माता से कहती हैं-'आप भयभीत न हों। (सूत्र १४५ वत्) यों कहकर वे भगवान तीर्थंकर एवं उनकी माता के लिए सजल कलश हाथ में लिए दक्षिण में आगान-परिगान करने लगती हैं। है उस काल, उस समय पश्चिम रुचककूट-निवासिनी आठ महत्तरा दिक्कुमारिकाएँ सुखोपभोग ऊ करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं* (१) इलादेवी, (२) सुरादेवी, (३) पृथ्वी, (४) पद्मावती, (५) एकनासा, (६) नवमिका, (७) भद्र, क तथा (८) सीता। आगे का वर्णन सूत्र १४५ वत् है। + वे भगवान तीर्थंकर की माता को सम्बोधित कर कहती हैं-'आप भयभीत न हो।' यों कहकर वे के हाथों में पंखे लिए हुए आगान-परिगान करती हैं। उस काल, उस समय उत्तर रुचककूट-निवासिनी आठ महत्तरा दिक्कुमारिकाएँ सुखोपभोग करती 9 हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं (१) अलंबुसा, (२) मिश्रकेशी, (३) पुण्डरीका, (४) वारुणी, (५) हासा, (६) सर्वप्रभा, (७) श्री, तथा (८) ह्री। शेष समग्र वर्णन पूर्ववत् है। वे भगवान तीर्थंकर तथा उनकी माता को प्रणाम कर उनके उत्तर में चँवर हाथ में लिए आगानपरिगान करती हैं। उस काल, उस समय रुचककूट के शिखर पर चारों विदिशाओं में निवास करने वाली चार महत्तरिक । दिक्कुमारिकाएं सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-(१) चित्रा, (२) चित्रकनका, (३) शतेरा, तथा (४) सौदामिनी। आगे का वर्णन पूर्वानुरूप है। वे आकर भगवान तीर्थंकर की माता से कहती हैं- 'आप डरें नहीं।' यों कहकर भगवान तीर्थंकर तथा उनकी माता के चारों विदिशाओं में अपने हाथों में दीपक लिए के आगान-परिगान करती हैं। उस काल, उस समय मध्य रुचककूट पर निवास करने वाली चार महत्तरिका दिक्कुमारिकाएँ 5 सुखोपभोग करती हुई अपने-अपने कूटों पर विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-(१) रूपा, । (२) रूपासिका, (३) सुरूपा, तथा (४) रूपकावती। | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (402) Jambudveep Prajnapti Sutra 35555555 )))))))5555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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