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________________ B555555555555555555555555555555555555 ॐ एवं णारिकंतावि उत्तराभिमुही अव्वा, णवरमिमं णाणत्तं गन्धावइ-वट्टवेअद्ध-पव्वयं जोअणणं म असंपत्ता पच्चत्थाभिमुही आवत्ता समाणी अवसिठं तं चेव पवहे अ मुहे अजहा हरिकन्तसलिला इति। [प्र. ] णीलवन्ते णं भन्ते ! वासहरपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता ? [उ. ] गोयमा ! नव कूडा पण्णत्ता, तं जहा-सिद्धाययणकूडे.। सिद्धे १, णीले २, पुवविदेहे ३, सीआ य ४, कित्ति ५, णारी अ६। अवरविदेहे ७, रम्मग-कूडे ८, उवदंसणे चेव ९॥१॥ ___ सव्वे एए कूडा पंचसइआ रायहाणी उ उत्तरेणं। [प्र. ] से केणट्टेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ-णीलवन्ते वासहरपब्बए २ ? [उ. ] गोयमा ! णीले णीलोभासे णीलवन्ते अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव परिवसइ सव्ववेरुलिआमए मणीलवन्ते जाव णिच्चेति। ॐ १३९. [प्र. ] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत नीलवान् नामक वर्षधर पर्वत कहाँ पर है ? के [उ. ] गौतम ! महाविदेह क्षेत्र के उत्तर में, रम्यक् क्षेत्र के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम 4 में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत नीलवान् नामक वर्षधर पर्वत है। वह पूर्व5 पश्चिम लम्बा और उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। जैसा निषध पर्वत का वर्णन है, वैसा ही नीलवान् वर्षधर पर्वत का वर्णन है। इतना अन्तर है-दक्षिण में इसकी जीवा है, उत्तर में धनुपृष्ठभाग है। 卐 उसमें केसरी नामक द्रह है। दक्षिण में उससे सीता महानदी निकलती है, जो उत्तरकुरु में बहती है। आगे यमक पर्वत तथा नीलवान् उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत एवं माल्यवान द्रह को दो भागों में बाँटती हुई ॐ आगे बढ़ती है। उसमें ८४,००० नदियाँ मिलती हैं। उनसे आपूर्ण होकर वह भद्रशाल वन में बहती है। ॐ जब मन्दर पर्वत दो योजन दूर रहता है, तब वह पूर्व की ओर मुड़ती है, नीचे माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत को विभाजित कर मन्दर पर्वत के पूर्व में पूर्व विदेह क्षेत्र को दो भागों में बाँटती हुई आगे जाती है। एक-एक चक्रवर्तिविजय में उसमें अट्ठाईस अट्ठाईस हजार नदियाँ मिलती हैं। यों कुल २८,००० x १६ + + ८४,००० = ५,३२,००० नदियों से आपूर्ण वह नीचे विजयद्वार की जगती को चीरकर पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है। बाकी का वर्णन पूर्वानुरूप है। ॐ नारीकान्ता नदी उत्तराभिमुख होती हुई बहती है। उसका वर्णन इसी के समान है। इतना अन्तर है-जब गन्धापाति वृत्तवैताढ्य पर्वत एक योजन दूर रह जाता है, तब वह वहाँ से पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। बाकी का वर्णन पूर्वानुरूप है। उद्गम तथा संगम के समय उसके प्रवाह का विस्तार हरिकान्ता नदी के सदृश होता है। __ [प्र. ] भगवन् ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? [उ. ] गौतम ! उसके नौ कूट हैं (१) सिद्धायतनकूट, (२) नीलवत्कूट, (३) पूर्वविदेहकूट, (४) सीताकूट, (५) कीर्तिकूट, (६) नारीकान्ताकूट, (७) अपरविदेहकूट, (८) रम्यककूट, तथा (९) उपदर्शनकूट। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Jambudveep Prajnapti Sutra a555555555 $ 55555555听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 (384) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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