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55555555555555555555555558 म १३८.[प्र.] भगवन् ! मन्दर पर्वत के कितने नाम हैं ?
[उ. ] गौतम ! मन्दर पर्वत के १६ नाम हैं-(१) मन्दर, (२) मेरु, (३) मनोरम, (४) सुदर्शन, 卐 (५) स्वयंप्रभ, (६) गिरिराज, (७) रत्नोच्चय, (८) शिलोच्चय, (९) लोकमध्य, (१०) लोकनाभि, म (११) अच्छ, (१२) सूयावर्त, (१३) सूर्यावरण, (१४) उत्तम या उत्तर, (१५) दिगादि, तथा (१६) अवतंस।
[प्र.] भगवन् ! वह मन्दर पर्वत मन्दर पर्वत क्यों कहलाता है ?
[उ. ] गौतम ! मन्दर पर्वत पर मन्दर नामक परम ऋद्धिशाली, पल्योपम के आयुष्य वाला देव ॐ निवास करता है, इसलिए वह मन्दर पर्वत कहलाता है। अथवा उसका यह नाम शाश्वत है।
138. (Q.) Reverend Sir ! How many are the names of Mandar mountain ?
(Ans.] Gautam ! Mandar mountain has sixteen names—(1) Mandar, (2) Meru, (3) Manoram,. (4) Sudarshan, (5) Svayamprabh, (6) Giriraj,
(7) Ratnochchaya, (8) Shilochchaya, (9) Lokmadhya, (10) Loknabhi, † (11) Achchh, (12) Suyavart, (13) Suryavaran, (14) Uttam or Uttar,
(15) Digadi, and (16) Avatansa. 5 [Q.] Reverend Sir ! Why is Mandar mountain called Mandar - mountain? fi (Ans.] Gautam ! A very prosperous god whose name is Mandar
resides on Mandar mountain. His life-span is one palyopam. His name is everlasting. नीलवान् वर्षधर पर्व NEELAVAN VARSHADHAR MOUNTAIN
१३९. [प्र.] कहि णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे दीवे णीलवन्ते णामं वासहरपब्बए पण्णत्ते ? _[उ. ] गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं, रम्मगवासस्स दक्खिणेणं, पुरथिमिल्ललवणसमुहस्स पच्चत्थिमिल्लेणं, पच्चत्थिमिल्ललवणसमुहस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बूद्दीवे दीवे णीलवन्ते णाम वासहरपव्वए पण्णत्ते। पाईण-पडीणायए, उदीण-दाहिणवित्थिण्णे, णिसहवत्तव्वया णीलवन्तस्स है भाणिअव्वा, णवरं जीवा दाहिणेणं, धणुं उत्तरेणं। ___एत्थ णं केसरिहहो, दाहिणेणं सीआ महाणई पवूढा समाणी उत्तरकुरुं एज्जमाणी २ जमगपब्बए णीलवन्त-उत्तरकुरु-चन्देरावत-मालवन्तहहे अ दुहा विभयमाणी २ चउरासीए सलिलासहस्सेहि आपूरेमाणी २ भहसालवणं एज्जमाणी २ मन्दर पव्वयं दोहिं जोअणेहिं असंपत्ता पुरत्थाभिमुही आवत्ता समाणी अहे मालवन्तवक्खारपब्वयं दालयित्ता मन्दरस्स पब्वयस्स पुरथिमेणं पुबविदेहवासं दुहा विभयमाणी २ एगमेगाओ चक्कवट्टिविजयाओ अट्ठावीसाए २ सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी २ पंचहिं # सलिलासयसहस्सेहिं बत्तीसाए अ सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे विजयस्स दारस्स जगई दालइत्ता । पुरथिमेणं लवणसमुहं समप्पेइ, अवसिटं तं चेवत्ति।
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|चतुर्थ वक्षस्कार
(383)
Fourth Chapter
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