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45 a sequence, one after the other in that order. (The entire Mahavideh may 4 be seen in the attached illustration.) ॐ सौमनस वक्षस्कार पर्वत SAUMANAS VAKSHASKAR MOUNTAIN
१२५. [प्र. ] कहि णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमणसे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! णिसहस्स वासहरपब्वयस्स उत्तरेणं, मन्दरस्स पब्वयस्स दाहिणपुरथिमेणं मंगलावई ॐ विजयस्स पच्चत्थिमेणं, देवकुराए पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बूद्दीवे २ महाविदेहे वासे सोमणसे णामं
वक्खारपब्वए पण्णत्ते। उत्तरदाहिणायए, पाईणपडीणवित्थिण्णे, जहा मालवन्ते वक्खारपबए तहा णवरं
सब्बरययामये अच्छे जाव पडिरूवे। णिसहवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोअणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि ॐ गाऊसयाइं उब्वेहेणं, सेसं तहेव सव्वं णवरं अट्ठो से, गोयमा ! सोमणसे णं वक्खारपव्वए। बहवे देवा य
देवीओ अ, सोमा, सुमणा, सोमणसे अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव परिवसइ, से एएणट्टेणं गोयमा !
जाव णिच्चे। * [प्र. ] सोमणसे अ वक्खारपव्वए कइ कूडा पण्णता ? [उ.] गोयमा ! सत्त कूडा पण्णत्ता, तं जहा
सिद्धे १ सोमणसे २ वि अ, बोद्धब्बे मंगलावई कूडे ३।
देवकुरु ४ विमल ५ कंचण ६, वसिडकूडे ७ अ बोद्धव्वे ॥१॥ एवं सब्बे पंचसइया कूडा, एएसिं पुच्छा दिसिविदिसाए भाणिअव्वा जहा गन्धमायणस्स, विमलकंचणकूडेसु णवरि देवयाओ सुवच्छा वच्छमित्ता य अवसिठेसु कूडेसु सरिस-णामया देवा रायहाणीओ दक्खिणेणंति। . १२५. [प्र.] भगवन् ! जम्बू द्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में सौमनस नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ पर है ?
_ [उ. ] गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, मन्दर पर्वत के दक्षिण-पूर्व में-आग्नेय कोण में, ॐ मंगलावती विजय के पश्चिम में, देवकुरु के पूर्व में जम्बू द्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में सौमनस म नामक वक्षस्कार पर्वत है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। जैसा माल्यवान् वक्षस्कार
पर्वत है, वैसा ही वह है। इतनी विशेषता है-वह सर्वथा रजतमय है, उज्ज्वल है, सुन्दर है। वह निषध ॐ वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचा तथा ४०० कोस जमीन में गहरा है। बाकी सारा वर्णन
माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के सदृश है। . ____ गौतम ! सौमनस वक्षस्कार पर्वत पर बहुत से सौम्य-सरल-मधुर स्वभावयुक्त, काय-कुचेष्टारहित, सुमनस्क-उत्तम भावनायुक्त, मनःकालुष्यरहित देव-देवियाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं। उसका अधिष्ठायक परम ऋद्धिशाली सौमनस नामक देव वहाँ निवास करता है। इस कारण वह सौमनस वक्षस्कार पर्वत कहलाता है। अथवा गौतम ! उसका यह नाम नित्य है-सदा से चला आ रहा है।
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चतुर्थ वक्षस्कार
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Fourth Chapter
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