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विवेचन : संकेतित 'चैत्य' शब्द अनेकार्थवाची है। 'चैत्य' शब्द के सन्दर्भ में भाषा वैज्ञानिकों का ऐसा ॥ 卐 अनुमान है कि किसी मृत व्यक्ति के जलाने के स्थान पर उसकी स्मृति में एक वृक्ष लगाने की प्राचीनकाल में 5
परम्परा रही है। सम्भव है, चिता के स्थान पर लगाये जाने के कारण वह वृक्ष 'चैत्य' कहा जाने लगा हो। आगे चलकर वृक्ष के स्थान पर स्मारक के रूप में मकान बनाया जाने लगा। उस मकान में किसी लौकिक देव या यक्ष आदि की प्रतिमा स्थापित की जाती थी। इस प्रकार उसने एक देवस्थान या मन्दिर का रूप ले लिया। वह 'चैत्य' ' कहा जाने लगा। ऐसा होते होते 'चैत्य' शब्द सामान्य मन्दिरवाची भी हो गया।
Elaboration—The word Chaitya has many interpretations. The linguists believe that there was an ancient tradition to plant a tree at 4 the place where a person was cremated as a token to commemorate him, It is possible that the said tree, which was planted at the place where the pyre (chitaa) was lit, was later termed a Chaitya. In later period, instead of tree a memorial was constructed at that place and the idol of a worldly diets or a yaksha (demi-god) was installed. Thus that place converted into a place of worship or a temple and was called Chaitya,
with passage of time the word Chaitya became a synonym of temple. । गणधर गौतम की जिज्ञासा THE QUERY OF GANADHAR GAUTAM
२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे ॐ गोअमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे, सम-चउरंस-संठाण-संठिए, वइर-रिसहणाराय-संघयणे, कणग-पुलग. निघस-पम्हगोरे, उग्गतवे, दित्ततवे, तत्ततवे, महातवे, ओराले, घोरे, घोरगुणे, घोरतवस्सी, 5
घोरबंभचेरवासी, उच्छूट-सरीरे, संखित्त-विउल-तेउ-लेस्से तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता, णमंसित्ता एवं वयासी।
२. उसी समय की बात है, भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी-(शिष्य) गौतम गोत्र में जन्मे 卐 इन्द्रभूति नामक अनगार थे, जिनकी देह की ऊँचाई सात हाथ थी। वे समचतुरस्र संस्थान (देह के चारों अंगों
के परस्पर समानुपाती, सन्तुलित और समन्वित रचनायुक्त शरीर) के धारक थे। उनका वज्र ऋषभनाराच-संहनन था, कसौटी पर अंकित स्वर्ण रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान उनका गौरवर्ण था। वे उग्र तपस्वी थे, कर्मों को भस्मसात् करने में अग्नि के समान प्रदीप्त तप करने वाले दीप्त तपस्वी थे। तप्त-卐 तपस्वी-जिनकी देह पर तपश्चर्या की तीव्र झलक थी।जो महातपस्वी, प्रबल, घोर, घोर गुण, घोर तपस्वी,
घोर ब्रह्मचारी, मोह से रहित एवं विपुल-तेजोलेश्य को संगोपित किये हुए थे। गौतम भगवान के पास 卐 आये. तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा की. वंदन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार कर बोले।
2. In that very period, the senior most disciple of Bhagavan Mahavir was ascetic Indrabhuti of Gautam clan. His height was seven haath (a measure). His body-constitution was well-proportioned
(Samachaturasra Samsthaan). His bone-structure was extremely strong 9 (Vajra-rishabh-narach samhanan). His complexion was fare like a lotus
having the brightness of gold lining. He was practicing hard austerities. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(4)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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