________________
2555 55555555955555555 5 55 555 555 5552
卐
5
5
[प्र. ] कहि णं भन्ते ! अणाढिअस्स देवस्स अणाढिआ णामं रायहाणी पण्णत्ता ?
[उ.] गोयमा ! जम्बुद्दीवे मन्दरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं जं चेव पुव्ववण्णिअं जमिगापमाणं तं चैव अव्यं, जाव उववाओ अभिसेओ अ निरवसेसोत्ति ।
फ़फ़
[प्र. ] से केणट्टेणं भन्ते ! एवं बुच्चइ उत्तरकुरा ?
[उ. ] गोयमा ! उत्तरकुराए उत्तरकुरू णामं देवे परिवसइ महिड्डीए जाव पलिओवमट्ठिइए, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ उत्तरकुरा २, अदुत्तरं च णंति (धुवे, णियए) सासए ।
१०७. [ २ ] वह जम्बू (सुदर्शन) बारह पद्मवरवेदिकाओं द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। वेदिकाओं का वर्णन पूर्वानुरूप है। पुनः वह अन्य १०८ जम्बू वृक्षों घिरा हुआ है, जो उससे आधे ऊँचे हैं। उनका वर्णन पूर्ववत् है । पुनश्च वे जम्बू वृक्ष छह पद्मवरवेदिकाओं से घिरे हुए हैं।
जम्बू (सुदर्शन) के उत्तर- - पूर्व में - ईशान कोण में, उत्तर में तथा उत्तर-पश्चिम में - वायव्य कोण में अनादृत नामक देव [जो अपने को वैभव, ऐश्वर्य तथा ऋद्धि में अनुपम, अप्रतिम मानता हुआ जम्बू द्वीप के अन्य देवों को आदर नहीं देता ] के चार हजार सामानिक देवों के ४,००० जम्बू वृक्ष हैं। पूर्व चार अग्रमहिषियों-प्रधान देवियों के चार जम्बू हैं।
दक्षिण - पूर्व में - आग्नेय कोण में, दक्षिण में तथा दक्षिण-पश्चिम में नैऋत्य कोण क्रमशः आठ हजार, दस हजार और बाहर हजार जम्बू हैं। ये पार्षद् देवों के जम्बू हैं।
पश्चिम में सात अनीकाधिपों-सात सेनापति-देवों के सात जम्बू हैं। चारों दिशाओं में सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के सोलह हजार जम्बू हैं।
卐
जम्बू (सुदर्शन) तीन सौ वनखण्डों द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। उसके पूर्व में पचास योजन पर
5 अवस्थित प्रथम वनखण्ड में जाने पर एक भवन आता है, जो एक कोस लम्बा है। उसका वर्णन
पूर्वानुरूप है। बाकी की दिशाओं में भी भवन बतलाये गये हैं।
जम्बू सुदर्शन के उत्तर-पूर्व- ईशान कोण में प्रथम वनखण्ड में पचास योजन की दूरी पर - (१) पद्म,
(२) पद्मप्रभा, (३) कुमुदा, एवं (४) कुमुदप्रभा नामक चार पुष्करिणियाँ हैं। वे एक कोस लम्बी, आधा कोस चौड़ी तथा पाँच सौ धनुष भूमि में गहरी हैं। उनका विशेष वर्णन अन्य आगमों से समझें । उनके 5 बीच-बीच में उत्तम प्रासाद हैं। वे एक कोस लम्बे, आधा कोस चौड़े तथा कुछ कम एक कोस ऊँचे हैं। सिंहासन पर्यन्त उनका वर्णन पुर्वानुरूप है। इसी प्रकार बाकी की विदिशाओं में आग्नेय, नैऋत्य तथा वायव्य कोण में भी पुष्करिणियाँ हैं। उनके नाम निम्नांकित हैं
(१) पद्मा, (२) पद्मप्रभा, (३) कुमुदा, (४) कुमुदप्रभा, (५) उत्पलगुल्मा, (६) नलिना, (७) उत्पला, (८) उत्पलोज्ज्वला, (९) भृंगा, (१०) भृंगप्रभा, (११) अंजना, (१२) कज्जलप्रभा, (१३) श्रीकान्ता, (१४) श्रीमहिता, (१५) श्रीचन्द्रा, तथा (१६) श्रीनिलया।
जम्बू के पूर्व दिग्वर्ती भवन के उत्तर में, ईशान कोण स्थित उत्तम प्रासाद के दक्षिण में एक पर्वतशिखर बतलाया गया है। वह आठ योजन ऊँचा एवं दो योजन जमीन में गहरा है। वह मूल में आठ
चतुर्थ वक्षस्कार
(321)
Jain Education International
Fourth Chapter
29555 5 55 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 555 5555 5 5 5 5 5 5 55 5552
For Private & Personal Use Only
फ्र
www.jainelibrary.org