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________________ குHமிழகமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிழமிழமிழமிழழகழ 卐 प्रणामं पेढे पण्णत्ते। पंच जोअणसयाई आयाम - विक्खम्भेणं, पण्णरस एक्कासीयाइं जोअणसयाइं फ्र किंचिविसेसाहि आई परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए बारस जोअणाइं बाहल्लेणं । तयणन्तरं च णं मायाए २ पदेसपरिहाणीए २ सव्वेसु णं चरिमपेरंतेसु दो दो गाउआई बाहल्लेणं, सव्वजम्बूणयामए अच्छे से गं एगए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ते, दुण्हंपि वण्णओ । तस्स णं जम्बूपेठस्स चउद्दिसिं एए चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ जाव तोरणाइं । तरसणं जम्बूपेटस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं मणिपेटिआ पण्णत्ता । अट्ठजोअणाई आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोअणाई बाहल्लेणं । तीसे णं मणिपेटिआए उप्पिं एत्थ णं जम्बूसुदंसणा पण्णत्ता । अट्ठ जोअणाई उच्चत्तेणं, अद्धजोअणं उब्वेहेणं । तीसे णं खंधो दो जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं, अद्धजोअगं बाहल्लेणं । फ्र उद्धं ती णं साला छ जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोअणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाई अट्ठ जोअणाई सव्वग्गेणं । तीसे णं अयमेरूवे वण्णावासे पण्णत्ते - वइरामया मूला, रययसुपइट्ठिअविडिमा जाव अहिअकिरी पासाईआ दरिसणिज्जा. । जंबूए सुदंसणाए चउद्दिसिं चत्तारि साला पण्णत्ता । तेसि णं सालाणं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं सिद्धाययणे पण्णत्ते । कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणगं कोसं उद्धं उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे जाव दारा पंचधणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं जाव वणमालाओ। मणिपेटिआ पंचधणुसयाई आयाम - विक्खंभेणं, अद्वाइज्जाई धणुसयाई बाहल्लेणं । तीसे णं मणिपेढिआए उप्पिं देवच्छन्दए, पंचधणुसयाई आयाम - विक्खंभेणं, साइरेगाई पंचधणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, जिणपडिमावण्णओ णेअव्वोत्ति । तत्थ णं जे से पुरथिमिल्ले साले, एत्थ णं भवणे पण्णत्ते । कोसं आयामेणं, एवमेव णवरमित्थ सयणिज्जं । सेसेसु पासायवडेंसया सीहासणा य सपरिवारा इति । १०७. [ प्र. १ ] भगवन् ! उत्तरकुरु में जम्बूपीठ नामक पीठ कहाँ पर है ? [उ.] गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मन्दर पर्वत के उत्तर में माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं सीता महानदी के पूर्वी तट पर उत्तरकुरु में जम्बूपीठ नामक पीठ है। वह ५०० योजन लम्बा-चौड़ा है। उसकी परिधि कुछ अधिक १,५८१ योजन है । वह पीठ बीच में बारह योजन मोटा है। फिर क्रमशः मोटाई में कम होता हुआ वह अपने आखिरी छोरों पर दो-दो कोस मोटा रह जाता है। वह सम्पूर्णतः जम्बूनदजातीय स्वर्णमय है। वह एक पद्मवरवेदिका से तथा एक वनखण्ड से 5 सब ओर से घिरा है। पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड का वर्णन पूर्वानुरूप है। जम्बूपीठ की चारों दिशाओं में तीन-तीन सोपान पंक्तियाँ हैं। तोरण पर्यन्त उनका वर्णन पूर्ववत् है। जम्बूपीठ के बीचोंबीच एक मणिपीठिका है। वह आठ योजन लम्बी-चौड़ी है, चार योजन मोटी है। उस मणिपीठिका के ऊपर जम्बू सुदर्शना नामक वृक्ष बतलाया गया है। वह आठ योजन ऊँचा तथा चतुर्थ वक्षस्कार Jain Education International (317) For Private & Personal Use Only Fourth Chapter 95 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 55 2 फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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