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________________ 卐 फफफफफफ [उ. ] गोयमा ! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं चुल्लहिमवन्तकूडस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते, पंच जोअणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, मूले पंच जोअणसयाई विक्खंभेणं, 5 मज्झे तिणि अ पण्णत्तरे जोअणसए विक्खंभेणं, उप्पिं अद्वाइज्जे जोअणसए विक्खंभेणं । मूले एगं जो अणसहस्सं पंच य एगासीए जोअणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, मज्झे एगं जोअणसहस्सं एगं च छलसीअं जोअणसयं किंचि विसेसूणं परिक्खेवेणं, उप्पिं सत्त इक्काणउए जोअणसए किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं । मूले विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उप्पिं तणुए, गोपुच्छ - संठाण - संठिए, सव्वरयणामए, अच्छे । सेणं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । सिद्धाययणस्स कूडस्स णं उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते, पण्णासं जोअणाई आयामेणं, पणवीसं जो अणाई विक्खंभेणं, छत्तीसं जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं जाव जिणपडिमावण्णओ भाणि अव्वो । [प्र. ] कहि णं भन्ते ! चुल्लहिमवन्ते वासहरपव्यए चुल्लहिमवन्तकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? [ उ. ] गोयमा ! भरहकूडस्स पुरत्थिमेणं सिद्धाययणकूडस्स पच्चत्थिभेणं, एत्थ णं चुल्लहिमवन्ते वासहरपव्चए चुल्लहिमवन्तकूडे णामं कूडे पण्णत्ते । एवं जो चेव सिद्धाययणकूडस्स उच्चत्तविक्खंभपरिक्खेवो जाव बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे पासायवडेंस पण्णत्ते, वासट्ठि जो अणाई अद्धजोअणं च उच्चत्तेणं, इक्कतीसं जोअणाई कोसं च विक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसि अपहसिए विव, विविहमणि - रयण - भत्तिचित्ते, वाउद्धअ - विजय - वेजयंती - पडाग-च्छत्ताइछत्तकलिए, तुंगे गगणतलमभिलंघमाणसिहरे, जालंतर - रयणपंजरुम्मीलिएव्व मणिरयणधूभिआए, विअसिअसयवत्तपुंडरी अ - तिलयरयणद्धचंदचित्ते, णाणामणिमयदामालंकिए, अंतो बहिं च सण्हे वइरतवणिज्ज - रुइलवालुगापत्थडे, सुहफासे, सस्सिरीअरूवे, पासाईए पडिरूवे । तस्स णं पासाय- वडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव सीहासणं सपरिवारं । ९२. [ प्र. १ ] भगवन् ! चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट- शिखर हैं ? [ उ. ] गौतम ! उसके ग्यारह कूट हैं - ( १ ) सिद्धायतनकूट, (२) चुल्लहिमवान्कूट, (३) भरतकूट, (४) इलादेवीकूट, (५) गंगादेवीकूट, (६) श्रीकूट, (७) रोहितांशाकूट, (८) सिन्धुदेवीकूट, (९) सुरादेवीकूट, (१०) हैमवतकूट, तथा (११) वैश्रवणकूट । [ प्र. ] भगवन् ! चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत पर सिद्धायतनकूट कहाँ है ? [ उ. ] गौतम ! पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, चुल्लहिमवान्कूट के पूर्व में सिद्धायतन नामक कूट है । वह ५०० योजन ऊँचा है। वह मूल में ५०० योजन, मध्य में ३७५ योजन तथा ऊपर २५० योजन विस्तीर्ण है। मूल में उसकी परिधि कुछ अधिक १, ५८१ योजन, मध्य में कुछ कम १,१८६ योजन तथा ऊपर कुछ कम ७९१ योजन है। वह मूल में चौड़ा, मध्य में सँकड़ा एवं ऊपर पतला । उसका आकार जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Jambudveep Prajnapti Sutra (272) Jain Education International फफफफफफफफ फ For Private & Personal Use Only 555555555555 ת ת ת ת फ 卐 또 www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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