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________________ फफफफफफफ 卐 तस्स णं रोहिअंसप्पवायकुंडस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं रोहिअंसा महाणई पवूढा समाणी हेमवयं वासं एज्जमाणी २ चउद्दसहिं सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी २ सद्दावइवट्टवेअड्डपव्वयं अद्धजोअणेणं असंपत्ता समाणी पच्चत्थाभिमुही आवत्ता समाणी हेमवयं वासं दुहा विभयमाणी २ अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जगई दालइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दं समप्पेइ । रोहिअंसा णं पवहे अद्धतेरसजोअणाई 5 विक्खंभेणं, कोसं उब्वेहेणं । तयणंतरं च णं मायाए २ परिवद्धमाणी २ मुहमूले पणवीसं जोअणसयं विक्खंभेणं, अद्वाइज्जाई जोअणाई उव्वेहेणं, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइआहिं दोहि अ वणसंडेहिं फ संपरिक्खित्ता । ९१. [ ४ ] उस पद्मद्रह के उत्तरी तोरण से रोहितांशा नामक महानदी निकलती है। वह पर्वत पर 卐 शब्द 5 उत्तर में २७६६६ योजन बहती है, आगे बढ़ती है । घड़े के मुँह से निकलते हुए पानी की ज्यों जोर से करती हुई वेगपूर्वक, मोतियों के हार के सदृश आकार में पर्वत-शिखर से प्रपात तक कुछ अधिक 5 एक सौ योजन प्रमाण प्रवाह के रूप में प्रपात में गिरती है। रोहितांशा महानदी जहाँ गिरती है, वहाँ एक 5 जिह्विका - जिह्वा के समान आकृतियुक्त प्रणालिका है। उसकी लम्बाई एक योजन है, चौड़ाई साढ़े बारह योजन है। उसका मोटापन एक कोस है। उसका आकार मगरमच्छ के खुले मुख के आकार जैसा है। वह 5 सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है । 卐 திமிதிமிதிமிததமிழமிழததததததததததததததமிமிமிமிமிமிமிமிழி 5 5 卐 रोहितांशा महानदी जहाँ गिरती है, वह रोहितांशाप्रपातकुण्ड नामक एक विशाल कुण्ड है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई एक सौ बीस योजन है। उसकी परिधि कुछ कम १८३ योजन है। उसकी गहराई दस योजन है। वह स्वच्छ है । तोरण- पर्यन्त उसका वर्णन पूर्ववत् है । उस रोहितांशाप्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से रोहितांशा महानदी आगे निकलती है, हैमवत क्षेत्र की ओर बढ़ती है। चौदह हजार नदियाँ वहाँ उसमें मिलती हैं। उनके साथ मिलती हुई वह शब्दापातीवृत्त वैताढ्य पर्वत के आधा योजन दूर रहने पर पश्चिम की ओर मुड़ती है । वह हैमवत क्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती हुई आगे बढ़ती है। तत्पश्चात् अट्ठाईस हजार नदियों के परिवार सहित वह नीचे की ओर 5 जगती को दीर्ण करती हुई उसे चीरकर लाँघती हुई पश्चिम दिशावर्ती लवणसमुद्र में मिल जाती है। रोहितांशा महानदी जहाँ से निकलती, वहाँ उसका विस्तार साढ़े बारह योजन है। उसकी गहराई एक कोस है । तत्पश्चात् वह मात्रा में - क्रमशः बढ़ती जाती है। मुख-मूल में समुद्र में मिलने के स्थान पर उसका विस्तार एक सौ पच्चीस योजन होता है, गहराई अढाई योजन होती है। वह अपने दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों से संपरिवृत है। उस रोहितांशाप्रपातकुण्ड के ठीक बीच में रोहितांशद्वीप नामक एक विशाल द्वीप है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई सोलह योजन है। उसकी परिधि कुछ अधिक पचास योजन है। वह जल से ऊपर दो कोस ऊँचा उठा हुआ है। वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ एवं सुकोमल है। भवन - पर्यन्त बाकी का वर्णन पूर्ववत् है । 91. [4] The source of Rohitansha river is the northern arched gate of फ्र padma drah (pond). It flows up to two hundred seventy six and six जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (270) Jambudveep Prajnapti Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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