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5555555))))) ) ))))))))) )))) shining with the unique glamour of omniscience. (Commentary by Vachak Shanti Chandra) भरत क्षेत्र : नामाख्यान BHARAT KSHETRA : HOW SONAMED?
८८. भरहे अ इत्थ देवे महिड्डीए महज्जुईए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ, से एएणडेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ भरहे वासे २ इति।
अदुत्तरं च णं गोयमा ! भरहस्स वासस्स सासए णामधिज्जे पण्णत्ते, जंण कयाइ ण आसि, ण कयाइ णत्थि, ण कयाइ ण भविस्सइ, भुविं च भवइ अ भविस्सइ अ, धुवे णिअए सासए अक्खए अब्बए अवट्ठिए णिच्चे भरहे वासे।
८८. भरत क्षेत्र में महान् ऋद्धिशाली, परम धुतिशाली, एक पल्योपम स्थिति वाला भरत नामक देव निवास करता । इस कारण यह क्षेत्र भरतवर्ष या भरत क्षेत्र कहा जाता है।
गौतम ! एक और बात भी है। भरतवर्ष या भरत क्षेत्र-यह नाम शाश्वत है-सदा से चला आ रहा है। कभी नहीं था, कभी नहीं है, कभी नहीं होगा-यह स्थिति इसके साथ नहीं है। यह था, यह है, यह होगा-यह ऐसी स्थिति लिये हुए है। यह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित एवं नित्य है।
॥ तृतीय वक्षस्कार समाप्त ॥ 88. A very prosperous, extremely bright celestial being with a lifespan of one palyopam was residing in Bharat area. So this region is called Bharat-varsh or Bharat Kshetra.
Gautam ! There is also one more reason. The name Bharat-varsh or Bharat Kshetra is permanent. It has been in existence since beginingless time. There was never a time-period when it was not there, when it is not there or when it shall not be there. It has such a characteristic that it was in the past, it is at present and it shall be in future. It is a standard, everlasting undisturbable, undestroyable, undiminishable and stable in nature.
• THIRD CHAPTER CONCLUDED •
| तृतीय वक्षस्कार
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Third Chapter
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