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________________ 卐 5 मडंबसहस्साणं, वीसाए आगरसहस्साणं, सोलसण्हं खेडसहस्साणं, चउदसण्हं संवाहसहस्साणं, छप्पण्णाए ததததத*****மிதமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிததமிமிமிததமி*** 卐 5 भरहस्स वासस्स अण्णेसिं च बहूणं राईसरतलवर जाव सत्थवाहप्पभिईणं आहेवच्चं पोरेबच्चं भट्टित्तं सामित्तं महत्तरगत्तं आणा - ईसर - सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे । अंतरोदगाणं एगूणपण्णाए कुरज्जाणं, विणीआए रायहाणीए चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स केवलकप्परस ओहणिहए कंटए उद्धिअमलिएसु सव्वसत्तुसु णिज्जिएसु भरहाहिवे णरिंदे । 卐 वरचंदणचच्चिअंगे वरहाररइअवच्छे वरमउडविसिट्ठए वरवत्थभूसणधरे सव्वोउअ - सुरहि - कुसुम - 5 मल्ल - सोभिअसिरे वरणाडग - नाडइज्ज-वरइत्थिगुम्मसद्धिं संपरिवुडे सव्वोसहि - सव्वरयण 卐 फ्र 5 बत्तीस हजार ऋतु - कल्याणिकाओं, बत्तीस हजार जनपद - कल्याणिकाओं, बत्तीस-बत्तीस पात्रों के समूह 卐 फ 5 सव्वसमिइ - समग्गे संपुण्णमणोरहे हयामित्तमाणमहणे पुव्वकय-तवप्पभाव - निविट्ठसंचिअफले भुंजइ माणुस्सए सुहे भरहे णामधेज्जेत्ति । फ्र 5 ८६. राजा भरत चौदह रत्नों, नौ महानिधियों, सोलह हजार देवताओं, बत्तीस हजार राजाओं, में अनुबद्ध बत्तीस हजार नाटक - मंडलियों, तीन सौ साठ सूतकारों, अठारह श्रेणि- प्रश्रेणि-जनों, चौरासी लाख घोड़ों, चौरासी लाख हाथियों, चौरासी लाख रथों, छियानवे करोड़ मनुष्यों - पदातियों, 5 बहत्तर हजार महानगरों, बत्तीस हजार जनपदों, छियानवे करोड़ गाँवों, निन्यानवे हजार द्रोणमुखों, 5 अड़तालीस हजार पत्तनों, चौबीस हजार कर्बटों, चौबीस हजार मडम्बों, बीस हजार आकरों, सोलह 5 हजार खेटों, चौदह हजार संबाधों, छप्पन अन्तरोदकों - जल के अन्तर्वर्ती सन्निवेश - विशेषों तथा उनपचास भील आदि जंगली जातियों के राज्यों का, विनीता राजधानी का, एक ओर लघु हिमवान् 5 पर्वत से तथा तीन ओर समुद्रों से मर्यादित समस्त भरत क्षेत्र का, अन्य अनेक माण्डलिक राजा, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशाली पुरुष, तलवर, सार्थवाह आदि का आधिपत्य, प्रभुत्व, स्वामित्व, फ अधिनायकत्व, आज्ञेश्वरत्व, सेनापति- जिसे आज्ञा देने का सर्वाधिकार होता है, वैसा सेनापतित्व- इन सबका सर्वाधिकृत रूप में पालन करता हुआ, सम्यक् निर्वाह करता हुआ राज्य करता था। फ्र 卐 5 राजा भरत ने अपने कण्टकों-गोत्रज शत्रुओं की समग्र सम्पत्ति का हरण कर लिया, उन्हें विनष्ट कर दिया तथा अपने अगोत्रज समस्त शत्रुओं को मसल डाला, कुचल डाला । 卐 मुकुट से विभूषित था, वह उत्तम, बहुमूल्य आभूषण धारण किये था, सब ऋतुओं में खिलने वाले श्रेष्ठ 5 फूलों की सुहावनी माला से उसका मस्तक शोभित था, उत्कृष्ट नाटक - मंडलियों तथा सुन्दर स्त्रियों के समूह से संपरिवृत राजा भरत को सर्वविध औषधियाँ, सर्वविध रत्न तथा सर्वविध समितियाँ-अ एवं बाह्य परिषदें संप्राप्त थीं। शत्रुओं का उसने मान भंग कर दिया। उसके समस्त मनोरथ सम्यक् सम्पूर्ण 5 थे। इस प्रकार राजा भरत अपने पूर्व जन्म में आचरित तप के, संचित शुभ फलप्रद पुण्य कर्मों के परिणामस्वरूप मनुष्य जीवन के सुखों का परिभोग करने लगा। 卐 राजा भरत के अंग श्रेष्ठ चन्दन से चर्चित थे । वक्षःस्थल पर हार सुशोभित थे, प्रीतिकर था, मस्तक 5 86. King Bharat was properly looking after with all the powers and was attending to the administrative set up of his kingdom. It included Third Chapter तृतीय वक्षस्कार (249) Jain Education International - आभ्यन्तर கமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமி*****ழ***** - 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5595555955555554554 For Private & Personal Use Only 出 卐 卐 फ्र फ्र फ 5 卐 卐 फ्र 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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