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________________ g乐5FFFFFFFFFFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 555555555555555555555555555555%%%%%% के केवलकप्पस्स भरहस्स वासस्स गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासमसण्णिवेसेसु सम्म पयापालणोवज्जिअलद्धजसे महया जाव आहेबच्चं, पोरेवच्चं, विहराहित्ति कटु जयजयसदं पउंजंति। म ८३. [ ३ ] यहाँ से आगे का वर्णन विनीता राजधानी से विजय हेतु अभियान करने के वर्णन जैसा है। केवल इतना अन्तर है कि विनीता राजधानी में प्रवेश करने के अवसर पर नौ महानिधियों ने तथा चार सेनाओं ने राजधानी में प्रवेश नहीं किया। उनके अतिरिक्त सबने उसी प्रकार विनीता में प्रवेश किया जिस प्रकार विजयाभियान के अवसर , ॐ पर विनीता से निकले थे। राजा भरत ने तुमुल वाद्य-ध्वनि के साथ विनीता राजधानी के बीचोंबीच चलते हुए जहाँ अपना पैतृक घर था, निवास-गृहों में सर्वोत्कृष्ट प्रासाद का बाहरी प्रवेश द्वार था, उधर चलने का विचार किया। जब राजा भरत इस प्रकार विनीता राजधानी के बीच से निकल रहा था, उस समय कतिपय जन विनीता राजधानी के बाहर-भीतर पानी का छिड़काव कर रहे थे, गोबर आदि का लेप कर रहे थे, सीढ़ियों से समायुक्त प्रेक्षागृहों की रचना कर रहे थे, तरह-तरह के रंगों के वस्त्रों से बनी, ऊँची, सिंह, चक्र आदि के चिह्नों से युक्त ध्वजाओं एवं पताकाओं से नगरी के स्थानों को सजा रहे थे। अनेक व्यक्ति नगरी की दीवारों को लीप रहे थे, पोत रहे थे। यावत् व्यक्ति काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान आदि तथा धूप की गमगमाती महकी से नगरी के वातावरण को उत्कृष्ट सुरभिमय बना रहे थे, कतिपय देवता उस समय चाँदी की वर्षा कर रहे थे। कई देवता स्वर्ण, रत्न, हीरों एवं आभूषणों की वर्षा कर रहे थे। म जब राजा भरत विनीता राजधानी के बीच से निकल रहा था तो नगरी के तिकोने स्थानों, 5 महापथों-बड़ी-बड़ी सड़कों पर, बहुत से धन के अभिलाषी, सुख या मनोज्ञ शब्द, सुन्दर रूप के ॐ अभिलाषी, भोगार्थी-सुखप्रद गन्ध, रस एवं स्पर्श के अभिलाषी, लाभार्थी-मात्र भोजन के अभिलाषी, गोधन आदि ऋद्धि के अभिलाषी, भांड आदि, खप्पर धारण करने वाले भिक्षु, राज्य के कर आदि से कष्ट पाने वाले, शंख बजाने वाले, चक्रधारी, लांगलिक-हल चलाने वाले कृषक, मुखमांगलिक-मुँह से , मंगलमय भाट, चारण आदि स्तुतिगायक, वर्धमानक-औरों के कन्धों पर स्थित पुरुष, बाँस के सिरे पर खेल दिखाने वाले-नट, चित्रपट दिखाकर आजीविका चलाने वाले, उत्तम, कमनीय, प्रीतिकर, मनोनुकूल, चित्त को प्रसन्न करने वाली, कल्याणमयी, प्रशंसायुक्त, मंगलयुक्त, शोभायुक्त-लालित्ययुक्त, हृदय को आल्हादित करने वाली वाणी से एवं मांगलिक शब्दों से राजा का लगातार अभिनन्दन करते हुए, अभिस्तवन करते हुए-प्रशस्ति करते हुए इस प्रकार बोले जन-जन को आनन्द देने वाले राजन् ! आपकी जय हो, आपकी विजय हो। जन-जन के लिए कल्याणस्वरूप राजन् ! आप सदा जयशील हों। आपका कल्याण हो। जिन्हें नहीं जीता है, उन पर आप फ्र विजय प्राप्त करें। जिनको जीत लिया है, उनका पालन करें, उनके बीच निवास करें। देवों में इन्द्र की 5 तरह, तारों में चन्द्र की तरह, असुरों में चमरेन्द्र की तरह तथा नागों में धरणेन्द्र की तरह लाखों पूर्व, करोड़ों पूर्व, कोडाकोडी पूर्व पर्यन्त उत्तर दिशा में लघु हिमवान् पर्वत तथा अन्य तीन दिशाओं में समुद्रों ॐ द्वारा मर्यादित सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम| जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (232) Jambudveep Prajnapti Sutra 45岁男%%%%%%%%%%%%%%%%%%% %%%%%%5B 听听听听听听听听听听听听听$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$5555% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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