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85555555555555555555555555))))))))558 \ description should be understood in detail as mentioned in Aupapatik 卐 Sutra.)
Ahead of king Bharat were horsemen riding on horses of great height 5 and elephants and persons riding on elephants. Behind him was the 4 string of chariots moving as usual.
८३. [२] तए णं से भरहाहिवे परिंदे हारोत्थयए सुकयरइअवच्छे जाव अमरवइसण्णिभाए इडूढीए ॐ पहिअकित्ती चक्करयण-देसिअमग्गे, अणेगरायवरसहस्साणुआयमग्गे जाव समुद्दरवभूअं पिव करेमाणे २
सविद्धीए सबजुईए जाव णिग्योसणाइयरवेणं गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-जोअणंतरिआहिं वसहीहिं वसमाणे २ जेणेव विणीया रायहाणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विणीआए रायहाणीए अदूरसामंते दुवालसजोअणायाम णवजोयणवित्थिण्णं जाव खंधावारणिवेसं करइ, करित्ता वद्धइरयणं सद्दावेइ, सिद्धावित्ता जाव पोसहसालं अणुपविसइ, २ ता विणीआए रायहाणीए अट्ठमभत्तं पगिण्हइ पगिण्हित्ता जाव अट्ठमभत्तं पडिजागरमाणे २ विहरइ।
८३. [२] तब नरेन्द्र, भरत क्षेत्र का अधिपति राजा भरत, जिसका वक्षःस्थल हारों से सुशोभित एवं प्रीतिकर था, देवराज इन्द्र के तुल्य जिसकी समृद्धि थी, जिससे उसकी कीर्ति फैल रही थी, समुद्र के गर्जन की ज्यों अत्यधिक उच्च स्वर से सिंहनाद करता हुआ, सब प्रकार की ऋद्धि तथा घुति से समन्वित, नगाड़े, झालर, मृदंग आदि अन्य वाद्यों की ध्वनि के साथ सहस्रों ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्वट, मडम्ब से युक्त मेदिनी को जीतता हुआ, उत्तम, श्रेष्ठ रत्न भेंट के रूप में प्राप्त करता हुआ, दिव्य के
चक्ररत्न का अनुसरण करता हुआ, एक-एक योजन के अन्तर पर पड़ाव डालता हुआ, रुकता हुआ, ॐ जहाँ विनीता राजधानी थी, वहाँ आया। राजधानी से थोड़ी ही दूरी पर बारह योजन लम्बा, नौ योजन + चौड़ा सैन्य-शिविर स्थापित किया। अपने उत्तम शिल्पकार को बुलाया। यहाँ की वक्तव्यता पूर्वानुसार
समझ लें। विनीता राजधानी को उद्दिष्ट कर-तदधिष्ठायक देव को साधने हेतु राजा ने तेले की तपस्या ॐ स्वीकार की। डाभ के बिछौने पर अवस्थित राजा भरत तेले की तपस्या में सावधानतापूर्वक संलग्न रहा। म तेले की तपस्या के पूर्ण हो जाने पर राजा भरत पौषधशाला से बाहर निकला। बाहर निकलकर # कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, आभिषेक्य हस्तिरत्न को तैयार करने, स्नानघर में प्रविष्ट होने, स्नान 卐 करने आदि का वर्णन पूर्ववत् समझ लें। सभी नित्य-नैमित्तिक आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर राजा भरत अंजनगिरि के शिखर के समान उन्नत गजपति पर आरूढ़ हुआ।
83. [2] King Bharat, the ruler of Bharat area was moving towards capital city Vinita. His chest was shining with garlands and was loveable. His wealth was like that of Indra, the master of devas. So his reputation was spreading all around. He was making a loud sound like that of the roaring sea. He was having the wealth and grandeur of all types. There was the musical sound of big drums, jhalar and small drums. He was moving ahead conquering thousands of villages, towns, suburbs, khet, karvat, madambs and accepting jewels of high class as gifts. He was
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(230)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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