________________
步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步。
85555555555555555555555555558
___ तदनन्तर वैडूर्य-नीलम की प्रभा से देदीप्यमान उज्ज्वल दण्ड यावत् लटकती हुई कोरंट पुष्पों की मालाओं से सुशोभित, चन्द्रमंडल के सदृश आभामय-ऊँचा फैलाया हुआ निर्मल आतपत्र-धूप से बचाने वाला छत्र, अति उत्तम सिंहासन, श्रेष्ठ मणि-रत्नों से विभूषित; जिसमें उत्तम मणियाँ तथा रत्न जड़े थे, (जिस पर राजा की पादुकाओं की जोड़ी रखी थी) वह पादपीठ-राजा के पैर रखने का पीढ़ा, चौकी। जो (उक्त सभी वस्तुएँ ) किंकरों-आज्ञापालन में तत्पर सेवकों, विभिन्न कार्यों में नियुक्त भृत्यों तथा पदातियों से घिरे थे, क्रमशः आगे रवाना किये गये। अनेक आज्ञापालक सेवक व सैनिक चलने लगे। तत्पश्चात्-(१) चक्ररत्न, (२) छत्ररत्न, (३) चर्मरत्न, (४) दण्डरत्न, (५) असिरल, (६) मणिरत्न, के (७) काकणीरत्न-ये सात एकेन्द्रिय रत्न यथाक्रम चले। उनके पीछे क्रमशः नैसर्प, पाण्डुक तथा शंखये नौ निधियाँ चलीं। ___ उनके बाद सोलह हजार देव चले। उनके पीछे बत्तीस हजार राजा चले। ___ उनके पीछे सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरन तथा पुरोहितरत्न ने प्रस्थान किया। तत्पश्चात् ॥ स्त्रीरत्न-परम सुन्दरी सुभद्रा, बत्तीस हजार ऋतुकल्याणिकाएँ-जिनका स्पर्श ऋतु के प्रतिकूल रहता
है-शीतकाल में उष्ण तथा ग्रीष्मकाल में शीतल रहता है, ऐसी राजकुलोत्पन्न कन्याएँ तथा बत्तीस हजार ॐ जनपदकल्याणिकाएँ-जनपद के अग्रगण्य पुरुषों की कन्याएँ यथाक्रम चलीं। उनके पीछे बत्तीस-बत्तीस
का समूह बनाये, बत्तीस हजार नाटकमंडलियाँ प्रस्थित हुईं। तदनन्तर तीन सौ साठ सूत-स्वस्तिमंगलवाचक अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि-(१) कुंभकार, (२) ग्रामप्रधान, (३) स्वर्णकार, (४) सूपकार, 9 (५) संगीतकार-गायक, (६) काश्यपक-नापित, (७) मालाकार-माली, (८) कक्षकर,
(९) ताम्बूलिक-ताम्बूल लगाने वाले-तमोली-ये नौ नारुक तथा (१) चर्मकार-चमार-जूते बनाने वाले, (२) यन्त्रपीलक-तेली, (३) ग्रन्थिक, (४) छिपक-छींपे, (५) कांस्यक-कसेरे, (६) सीवक-दर्जी, (७) गोपाल-ग्वाले, (८) भिल्ल-भील, तथा (९) धीवर-ये नौ कारुक-इस प्रकार कुल अठारह श्रेणि
प्रश्रेणि जन चले। उनके पीछे क्रमशः चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख रथ, छियानवे फ़ करोड़ मनुष्य-पदाति जन चले। तत्पश्चात् अनेक राजा, ईश्वर, सार्थवाह आदि यथानुक्रम चले।
____ तत्पश्चात् बहुत से तलवारधारी, लट्ठीधारी, भालाधारी, धनुर्धारी, चंवर लिए हुए, उद्धत घोड़ों 5 तथा बैलों को नियन्त्रित करने हेतु चाबुक आदि लिए हुए, अथवा पासे आदि द्यूत-सामग्री लिए हुए,
काष्ठपट्ट लिए हुए, कुल्हाड़े लिए हुए, पुस्तकधारी-ग्रन्थ लिए हुए, वीणा लिए हुए, कूप्यग्राह, पक्व
तैलपात्र लिए हए, द्रम्म आदि सिक्कों के पात्र अथवा पानदान सुपारी आदि के पात्र लिए हुए पुरुष तथा फ दीपिका-मशालधारी अपने-अपने कार्यों के अनुसार रूप, वेश, चिह्न तथा वस्त्र आदि धारण किये हुए + यथाक्रम चले। उनके बाद बहुत से दण्डी-दण्ड धारण करने वाले, मुण्डी-सिरमुण्डे, शिखण्डी
शिखाधारी, जटाधारी, पिच्छी-मोरपंख आदि धारण किये हुए, हास-परिहास करने वाले-विदूषक ॐ धूतविशेष में निपुण, खेल-तमाशे करने वाले, चाटुकारक-प्रिय वचन बोलने वाले, कान्दर्पिक-कामुक 9 या शृंगारिक चेष्टाएँ करने वाले, कौत्कुचिक-भांड आदि तथा मौखरिक, वाचाल मनुष्य, गाते हुए, खेल
करते हुए (तालियाँ बजाते हुए), नाचते हुए, हँसते हुए, पासे आदि द्वारा द्यूत आदि खेलने का उपक्रम 5 करते हुए, क्रीड़ा करते हुए, दूसरों को गीत आदि सिखाते हुए, सुनाते हुए, कल्याणकारी वाक्य बोलते
तृतीय वक्षस्कार
(227)
Third Chapter
55555555555555555555
5 5555555
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org