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555555555555555555555E ___ तयणंतरं च णं सोलस देवसहस्सा पुरओ अहाणुपुब्बीए संपद्विआ, तयणंतरं च णं बत्तीसं । रायवरसहस्सा अहाणुपुब्बीए संपद्विआ।
तयणंतरं च णं सेणावइरयणे पुरओ अहाणुपुबीए संपट्टिए, एवं गाहावइरयणे, वद्धइरयणे, पुरोहिअरयणे। तयणंतरं च णं इत्थिरयणे पुरओ अहाणुपुबीए। तयणंतरं च णं बत्तीसं उउकल्लाणिआ ॐ सहस्सा पुरओ अहाणुपुब्बीए। तयणंतरं च णं बत्तीस जणवयकल्लाणिआ सहस्सा पुरओ अहाणुपुब्बीए.।
तयणंतरं च णं बत्तीसं बत्तीसइबद्धा णाडगसहस्सा पुरओ अहाणुपुबीए., तयणंतरं च णं तिणि सट्ठा + सूअसया पुरओ अहाणुपुबीए., तयणंतरं च णं अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ पुरओ., तयणंतरं च णं
चउरासीइं आससयसहस्सा पुरओ., तयणंतरं च णं चउरासीइं हत्थिसयसहस्सा पुरओ अहाणुपुबीए., ॐ तयणंतरं च णं छण्णउई मणुस्सकोडीओ पुरओ अहाणुपुब्बीए संपट्ठिआ, तयणंतरं च णं बहवे राई-सर
तलवर जाव सत्थवाहप्पभिइओ पुरओ अहाणुबीइ संपढिआ। ___ तयणंतरं च णं बहवे असिग्गाहा लडिग्गाहा कुंतग्गाहा चावग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा फलगग्गाहा
परसुग्गाहा पोत्थयग्गाहा वीणग्गाहा कूअग्गाहा हडप्फग्गाहा दीविअग्गाहा सएहिं सएहिं रूवेहि, एवं वेसेहिं चिंधेहिं निओएहिं सएहिं २ वत्थेहिं पुरओ अहाणुपुबीए संपत्थिआ, तयणंतरं च णं बहवे दंडिणो मुंडिणो सिंहडिणो जडिणो पिच्छिणो हासकारगा खेडकारगा दवकारगा चाडुकारगा कंदप्पिा कुक्कुइआ महोरिआ , गायंता य दीवंता य नच्चंता य हसंता य रमंता य कीलंता य सासेंता य सावेंता य जावेंता य रावेंता य
सो ता य सोभावेंता य आलोअंता य जयजयसई च पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुबीए संपढिआ, एवं ॐ उववाइअगमेणं जाव।
तस्स रण्णो पुरओ महआसा आसधरा; उभओ पासिं णागा णागधरा पिट्ठओ रहा रहसंगेल्ली 9 अहाणुपुबीए संपट्ठिआ इति।
८३. [१] राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया-अधिकृत किया। शत्रुओं को जीता। म उसके यहाँ समग्र रत्न उत्पन्न हुए। उनमें चक्ररत्न मुख्य था। राजा भरत को नौ निधियाँ प्राप्त हुई। उसका __ कोश-(खजाना) धन-वैभवपूर्ण था। बत्तीस हजार राजा उसके अनुगामी थे। उसने साठ हजार वर्षों में के समस्त भरत क्षेत्र को साध लिया। एक समय राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। म
बुलाकर कहा- 'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही आभिषेक्य हस्तिरत्न को तैयार करो। हाथी, घोड़े, रथ तथा
पदातियों से युक्त चातुरंगिणी सेना सजाओ। कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा करके राजा को सूचित कराया। क राजा स्नान आदि कृत्यों से निवृत्त होकर अंजनगिरि के शिखर के समान उन्नत गजराज पर आरूढ़
हुआ। राजा के हस्तिरत्न पर आरूढ़ हो जाने पर स्वस्तिक, श्रीवत्स (नन्द्यावर्त, वर्धमानक, भद्रासन,
मत्स्य, कलश) दर्पण-ये आठ मंगल-प्रतीक राजा के आगे चले। उनके बाद जल से परिपूर्ण कलश, म झारियाँ, दिव्य छत्र, पताका, चँवर तथा राजा को दिखाई देने वाली, देखने में सुन्दर प्रतीत होने वाली,
हवा से फहराती, ऊँची उठी हुई, मानो आकाश को छूती हुई-सी विजय वैजयन्ती-विजयध्वजा लिए राजपुरुष चले।
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(226)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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