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5 आंकर वे आकाश में अवस्थित हुए। उन्होंने हाथ जोड़े, जय-विजय शब्दों द्वारा राजा भरत को
5 वर्धापित किया और कहा
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देवानुप्रिय ! आपने सम्पूर्ण भरत क्षेत्र को जीत लिया है। हम आपके देशवासी, आपके प्रजाजन हैं, हम आपके आज्ञानुवर्ती सेवक हैं। ऐसा कहकर विनमि ने स्त्रीरत्न तथा नमि ने रत्न, आभरण भेंट किये।
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राजा भरत ने ये उपहार स्वीकार किये। (नमि एवं विनमि का सत्कार किया, सम्मान किया। उन्हें
सत्कृत, सम्मानित कर) वहाँ से विदा किया। फिर राजा भरत पौषधशाला से बाहर निकला। बाहर
निकलकर स्नानघर में गया। स्नान आदि सम्पन्न कर भोजन - मण्डप में गया, तेले का पारणा किया।
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80. King Bharat saw that divine Chakra Ratna moving towards Vaitadhya mountain in the south. He came at the foot of Vaitadhya mountain in the north. There he established a city like camp for his army in an area of twelve yojan by nine yojan. He entered the Paushadhashala.
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He observed austerities for three days in order to overpower Nami and Vinami, the Vidyadhar rulers who were the sons of Kachchh and Mahakachchh, the chief advisors of Shri Rishabh Swami. He concentrating his thoughts on Nami and Vinami, the Vidyadhar kings, stabilised himself (in austerities). When the austerities of three days concluded, Nami and Vinami the Vidyadhar kings came to know through their divine sensual knowledge about it. They then joined together and said
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"Bharat, the Chakravarti king of the four directions, has taken birth in Bharat area of Jambu dveep (continent). It has been the age-old tradition, in the past, at present and also in future of Vidyadhar kings that they make an offering to such a king. So we should also offer a gift to the king. With this contemplation, inspired by their divine sensual knowledge they took with them the female (Stri) Ratna, Subhadra. Subhadra was extremely beautiful. Her physical body was complete and well proportioned in respect of size, weight and height. It was excellent and all the parts of the body were beautiful. She had a unique personality and grandeur. Her youth was permanent. The hair on her
(214)
Jambudveep Prajnapti Sutra
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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विद्याधरराज नमि तथा विनमि को विजय कर लेने के उपलक्ष्य में अष्ट दिवसीय महोत्सव आयोजित किया। फ्र
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अष्ट दिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने के पश्चात् दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। उसने
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उत्तर-पूर्व दिशा में - ईशानकोण में गंगादेवी के भवन की ओर प्रयाण किया । यहाँ पर वह सब वक्तव्यता 5 जो सिन्धुदेवी के प्रसंग में वर्णित है वही कहे। विशेषता केवल यह है कि गंगादेवी ने राजा भरत को भेंट रूप में विविध रत्नों से युक्त एक हजार आठ कलश, स्वर्ण एवं विविध प्रकार की मणियों से चित्रित - दो सोने के सिंहासन विशेष रूप से उपहार दिये। फिर राजा ने अष्ट दिवसीय महोत्सव आयोजित करवाया।
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