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________________ 25 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5595 फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ 近 उन्मग्नजला, निमग्नजला महानदियाँ UNMAGNAJALA AND NIMAGNAJALA RIVERS 5 ७१. तीसे णं तिमिसगुहाए बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं उम्मग्ग - णिमग्ग- जलाओ णामं दुवे महाणईओ पण्णत्ताओ, जाओ णं तिमिसगुहाए पुरच्छिमिल्लाओ भित्तिकडगाओ पवूढाओ समाणीओ पच्चत्थिमेणं सिंधुं महाण समप्पेंति । 4451 तए णं से वद्धइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए जाव विणणं पडिसुणेइ पडिसुणित्ता खिप्पामेव उम्मग्गणिमग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ सुहसंकमे करेइ करेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जाव एअमाणत्तिअं पच्चष्पिणइ । [प्र. ] से केणणं भंते ! एवं बुच्चइ उम्मग्ग- णिमग्गजलाओ महाणईओ ? [ उ. ] गोयमा ! जण्णं उम्मग्गजलाए महाणईए तणं वा पत्तं वा कटुं वा सक्करं वा आसे वा हत्थी वा फ्र रहे वा जोहे वा मणुस्से वा पक्खिप्पर तण्णं उम्मग्गजलामहाणई तिक्खुत्तो आहुणिअ आहुणो एगंते थलंसि एडेइ, जण्णं णिग्गजलाए महाणईए तणं वा पत्तं वा कट्टं वा सक्करं वा ( आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे 5 वा) मस्से वा पक्खिप्पर तण्णं णिमग्गजलामहाणई तिक्खुत्तो आहुणिअ २ अंतो जलंसि णिमज्जावेइ, से णणं गोयमा ! एवं वुच्चइ उम्मग्ग - णिमग्गजलाओ महाणईओ । ७१. तमिस्रा गुफा के ठीक बीच में उन्मग्नजला तथा निमग्नजला नामक दो महानदियाँ हैं, जो तमिस्रा गुफा के पूर्व के भित्तिप्रदेश से निकलती हुई पश्चिमी सिन्धु महानदी में मिलती हैं। तृतीय वक्षस्कार फ 卐 तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसिअमग्गे अणेगराय महया उक्किट्ठ सीहणाय जाव करेमाणे २ फ्र सिंधूए महाणईए पुरच्छिमिल्ले णं कूडे णं जेणेव उम्मग्गजला महाणई तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 5 वद्धइरयणं सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुष्पिआ ! उम्मग्गणिमग्गजलासु महाणईसु 5 अणेगखंभसयसण्णिविट्ठे अयलमकंपे अभेज्जकवए सालंबणबाहाए सव्वरयणामए सुहसंकमे करेहि करेत्ता 5 मम एअमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि । 卐 卐 Jain Education International 2545555 55 57 6 4 5 6 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5555955555559552 (183) 卐 For Private & Personal Use Only 卐 Third Chapter फ्र 卐 卐 卐 तए णं से भरहे राया सखंधावारबले उम्मग्गणिमग्गजलाओ महाणईओ तेहिं अणेगखंभसयस - फ्र णिविट्ठेहिं सुहसंकमेहिं उत्तरइ, तए णं तीसे तिमिसगुहाए उत्तरिल्लस्स दुबारस्स कवाडा सयमेव महया फ्र २ कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई सगाइ ठाणाई पच्चोसक्कित्था । फ 卐 卐 卐 फ्र फ्र 卐 [प्र.] भगवन् ! इन नदियों के उन्मग्नजला तथा निमग्नजला - ये नाम किस कारण पड़े ? 卐 [ उ. ] गौतम ! उन्मग्नजला महानदी में तृण, पत्र, काष्ठ, पाषाणखण्ड - पत्थर का टुकड़ा, घोड़ा, हाथी, रथ, सेना या मनुष्य जो भी गिरा दिये जायें तो वह नदी उन्हें तीन बार इधर-उधर घुमाकर फ किसी एकान्त, निर्जल स्थान में फेंक देती है। निमग्नजला महानदी में तृण, पत्र, काष्ठ, पत्थर का टुकड़ा (घोड़ा, हाथी, रथ, योद्धा - पदाति) या मनुष्य जो भी गिरा दिये जायें तो वह उन्हें तीन बार इधर-उधर घुमाकर जल में निमग्न कर देती है - डुबो देती है । गौतम ! इस कारण से ये महानदियाँ क्रमशः उन्मग्नजला तथा निमग्नजला कही जाती हैं। फ फ्र 卐 卐 卐 फ्र 卐 फ्र 卐 फ्र 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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