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before and moved towards Vaitadhya mountain in north-east direction filling the environment with divine music.
Following the Chakra Ratna, king Bharat came to the foot of Vaitadhya mountain in the South. He set up a camp in the area of 12 yojan by 9 yojan for the army. He observed fast for three days aiming at Vaitadhya Kumar Deva in order to control it. In the Paushadhashala he concentrated during his three days fast in meditation on Vaitadhya Giri Kumar Deva ( Sutra 62 ).
The seat of Vaitadhya Giri Kumar Deva trembled as a result of continued three day fast of king Bharat (Further description should be understood similar to that of Sindhu Devi). Vaitadhya Giri Kumar came to king Bharat at a fast speed for offering jewels, crown, Katak, Trutit, clothes and many ornaments as gift (Further description is the same as that of Sindhu Devi). The officer responsible for arrangements arranged eight day festival and then informed the king about compliance of his order.
तमिस्रा
गुफा विजय CONQUEST OF TAMISRA CAVE
६५. तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए जाव पच्चत्थिमं दिसिं तिमिसगुहाभिमुहे पयाए आवि होत्था । तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं जाव पच्चत्थिमं दिसिं तिमिसगुहाभिमुहं पयातं पासइ २ त्ता हट्ठतुट्ठचित्त जाव तिमिसगुहाए अदूरसामंते दुवालस - जोअणायामं वो अणविच्छिणं जाव कयमालस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ २ त्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी जाव कयमालगं देवं मणसि करेमाणे २ चिट्ठइ ।
तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्टमभत्तंसि परिणममाणंसि कयमालस्स देवस्स आसणं चलइ तहेव जाव 5 वेअद्धगिरिकुमारस्स णवरं पीइदाणं इत्थीरयणस्स तिलगचोद्दसं भंडालंकारं कडगाणि अ (तुडिआणि अ वत्थाणि अ) गेहइ २ त्ता ताए उक्किट्ठाए जाव सक्कारेइ सम्माणेइ २ त्ता पडिविसज्जेइ ( सूत्र ३४वत्) भोअणमंडवे, तहेव महामहिमा कयमालस्स पच्चष्पिणंति ।
६५. अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न यावत् पश्चिम दिशा में मित्रा गुफा की ओर आगे बढ़ा। राजा भरत ने उस दिव्य चक्ररत्न का ( अनुगमन करते हुए) पश्चिम
5 दिशा में तमिस्रा गुफा की ओर आगे बढ़ते हुए देखा। उसे यों देखकर राजा अपने मन में हर्षित हुआ, परितुष्ट हुआ। उसने तमिस्रा गुफा से न अधिक दूर, न अधिक समीप - थोड़ी ही दूरी पर बारह योजन लम्बा और नौ योजन चौड़ा सैन्य शिविर स्थापित किया । कृतमाल देव को उद्दिष्ट कर उसने तेले की तपस्या स्वीकार की । तपस्या का संकल्प कर उसने पौषध लिया, ब्रह्मचर्य स्वीकार किया।
तेले की तपस्या में अभिरत राजा भरत मन भरत द्वारा यों तेले की तपस्या में अभिरत हो जाने
तृतीय वक्षस्कार
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Third Chapter
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कृतमाल देव का ध्यान करता हुआ स्थित हुआ । फ पर कृतमाल देव का आसन चलित हुआ। आगे का फ्र
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