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________________ LCLC Thereafter, king Bharat came out of Paushadhashala. He came to the si bathing place and took his bath. He performed routine exercises. He then came to the dining hall and sat there in easy posture. He broke his three day fast and thereafter sat in the outer assembly hall facing east. He called his officials of eighteen categories and asked them to arrange eight day celebration and then report compliance. They arranged the same and reported compliance. वैताढ्य गिरिकुमार-विजय CONQUEST OF VAITADHYA GIRI KUMAR ६४. तए णं से दिव्वे चक्करयणे सिंधूए देवीए अट्ठाहिआए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए म आउहघरसालाओ तहेव जाव उत्तरपुरच्छिमं दिसिं वेअद्धपव्वयाभिमुहे पयाए आवि होत्था। ॐ तए णं से भरहे राया जाव जेणेव वेअद्धपब्बए जेणेव वेअद्धस्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे तेणेंव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वेअद्धस्स पव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे दुवालसजोअणायामं णवजोअणविच्छिण्णं वरणगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ करित्ता जाव वेअद्धगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ पगिहित्ता पोसहसालाए जाव (सूत्र ६२वत्) अट्ठमभत्तिए वेअद्धगिरिकुमारं देवं मणसि करेमाणे ॥ करेमाण चिट्ठइ। मी तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि वेअद्धगिरिकुमारस्स देवस्स आसणं चलइ, 3 एवं सिंधुगमो अब्बो, पीइदाणं आभिसेक्कं रयणालंकारं कडगाणि अ तुडिआणि अ वत्थाणि अ आभरणाणि अ गेण्हइ २ ता ताए उक्किट्ठाए जाव अट्टाहि पच्चप्पिणंति।। ६४. सिन्धु देवी के विजयोपलक्ष्य में अष्टदिवसीय महोत्सव सम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न पूर्ववत् शस्त्रागार से बाहर निकला। यावत् (दिव्य वाद्यध्वनि से गगन-मण्डल को आपूर्ण करता हुआ।) उत्तर-पूर्व दिशा में ईशानकोण में वैताढ्य पर्वत की ओर चला। भी राजा भरत (चक्र का अनुगमन करता हुआ) जहाँ वैताढ्य पर्वत के दाहिनी ओर की तलहटी थी, ॐ वहाँ आया। वहाँ बारह योजन लम्बा तथा नौ योजन चौड़ा सैन्य-शिविर स्थापित किया। वैताढ्यकुमार फ़देव को उद्दिष्ट कर उसे साधने हेतु तीन दिनों का उपवास किया। पौषधशाला में (सूत्र ६२ अनुसार) तेले की तपस्या में स्थित मन में वैताढ्य गिरिकुमार का ध्यान करता हुआ अवस्थित हुआ। ज भरत द्वारा यों तेले की तपस्या में निरत होने पर वैताठ्य गिरिकुमार का आसन डोला। (आगे का प्रसंग सिन्धु देवी के प्रसंग जैसा समझना चाहिए) वैताढ्य गिरिकुमार ने राजा भरत को प्रीतिदान भेंट 卐 करने हेत योग्य रत्नालंकार-मकट. कटक. त्रटित. वस्त्र तथा अन्यान्य आभषण लिये। तीव्र गति से वह राजा के पास आया। (आगे का वर्णन सिन्धु देवी के वर्णन जैसा है) राजा की आज्ञा से अष्टदिवसीय 1 महोत्सव आयोजित कर आयोजकों ने राजा को सूचित किया। 64. After the conquest of Sindhu Devi and eight day festivities in lieu thereof, the divine, Chakra Ratna came out of the ordnance store as | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (166) Jambudveep Prajnapti Sutra 卐ऊ5555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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